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________________ वर्तमानकाल मे धन को विशेष महत्व प्राप्त हो गया है । कुछ इने-गिने लोगो के अधिकार में अधिकाश सम्पत्ति पहुंचने से उसके उपभोग का अधिकार अन्य लोगो को नहीं रहा है। 'यही वह घुन है जिसने आत्मा, धर्म एव सहकारिता के सगठन को ढीला ही नही कर दिया, अपितु इन सिद्धान्तो को पैगे नले रौद कर मिट्टी में मिला दिया है। इसीसे मानवता अध्री सौजन्यता वैधव्य को प्राप्त हो गई हैं।' प्रस्तुत गुत्थी को सुलझाने का एकमात्र सरल उपाय यही है कि हमे कम से कम परिग्रह रखने के सिद्धान्त को अपनाना होगा। विश्ववन्द्य महात्मा गाधी ने एक स्थान पर परिग्रह को घटाते रहने के सम्बन्ध मे बतलाया है कि "सच्चे सुवार का, मच्ची सभ्यता का लक्षण परिग्रह बढ़ाना नहीं है, बल्कि उसका विचार और इच्छापूर्वक घटाना है। ज्यो-ज्या परिग्रह घटाइए, त्यो-स्यो सच्चा सुख और सच्चा सन्तोप बढता है, सेवा-शक्ति बढती है। x x x अनावश्यक परिग्रह से पडोसी को चोरी करने के लालच मे फसाते है ।" उन्होंने वस्तुप्रो के परिग्रह के लिए ही नही विचार के परिग्रह करने के लिए भी एक अन्य स्थान पर त्याज्य ठहराया है। देखिये-"वस्तुओ की भांति विचार का भी अपरिग्रह होना चाहिए । जो मनुप्प अपने दिमाग में निरर्थक ज्ञान भर लेता है, वह परिग्रही है। जो विचार हमे ईश्वर ने विमुख रखते हो अथवा ईश्वर के प्रति न ले जाते हो, वे सभी परिग्रह मे मा जाते है और इसीलिए त्याज्य है।" वास्तव मे गांधीजी ने परिग्रह के सम्बन्ध मे जो कुछ भी कहा, वह सत्य एव अहिंसा के विचार से एक सौ एक नये पैसे सत्य है। ___ एक स्थान पर एक विद्वान लेखक ने अशाति का मूल कारण बताते हुए लिखा है कि, "बहुत क्या ससार मे जितने विद्रोह, शोपण, अन्याय, पात्याचार, सघर्प और दुख होते हैं, उनका मूल कारण परिग्रह है।" मत आज के विश्व को वह मार्ग अपनाने की आवश्यकता है, जिसके द्वारा परिग्रह की लोलुपता का स्वतः ही अत हो जाए । इसका एकमात्र मागं "अपरिग्रह" ही हो सकता है । अपरिग्रह का उद्देश्य हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करने के लिए प्रेरित करना है। प्राचीनकाल मै अपरिग्रह के कारण ही लोगो का जीवन सुखी,स्मृद्धिशाली एव शान्तिमय था, किन्तु प्राधुनिक काल मे अपरिग्रह के अभाव से वह अनेक विषमताओ का शिकार बना हुआ हैं । अत हमे अपरिग्रह का मार्ग अपनाना ही श्रेयस्कर हो सकता है । महात्मा टालस्टाय के शब्दो मै, "जव लोगो को पहिनने को कपड़ा न मिलता हो, तब मैं कपड़ो से सन्दूक मरू या जव लोगो को खाने को भी न मिलता हो तब मैं अजीर्ण की दवा करूं, यह मानवता का सबसे पहला कलक है।" टालस्टाय का प्रस्तुत कथन कितना युक्तियुक्त एव समाज की दृष्टि से कितना मुसंगत है, यह सहज ही जात हो जाता है। एक समय का कथन है कि किसी धनाढ्य ने हजरत ईसा से प्रश्न किया कि ससार में मनुष्य निर्दोष कैसे ठहर सकता है ? इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि, "यदि प्राणी निर्दोप रहना चाहता है, तो वह अपनी समस्त सम्पत्ति गरीबो को वाट दे। इससे उसे सुख और शाति अवश्य [ ४२५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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