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________________ थी। वहाँ काया नगरी के भीतर तुम अनन्त बल और ज्योति वाले होते हुए भी कर्मों के आवरण में लिपटे पड़े थे । अव तो तुम्हें मोह की नीद छोडकर सावधान हो जाना चाहिए।"3 एक सम्ली मुमति को लेकर, नायक चेतन के पास मिलाने के लिए गई। पहले दूतियां ऐसा किया करती थीं । वहाँ वह सखी अपनी वाला सुमति की प्रशसा करते हुए चेतन ने कहती है, "हे लालन ! मै अमोलक वाल लाई हूँ। तुम देखो तो वह कैसी अनुपम मुन्दरी है। ऐसी नारी तीनो ससार में दूसरी नहीं है । और हे चेतन ! इसकी प्रीति भी तुमने ही सनी हुई है। तुम्हारी इस राधे की एक-दूसरे पर अनन्त रीझ है । उसका वर्णन करने में मैं पूर्ण असमर्थ हैं।" आध्यात्मिक विवाह इसी प्रेम के प्रसग में आध्यात्मिक विवाहो को लिया जा सकता है। ये 'विवाहला', 'विवाह', 'विवाहलां' और 'विवाहो' आदि नामो में अभिहित हुए हैं। इनको दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-एक तो वह जब दीक्षा ग्रहण के समय आचार्य का दीमाकुमारी अथवा संयमश्री के साथ विवाह सम्पन्न होता है, और दूसरा वह जत्र आत्मा रूपी नायक के साथ उसी के किसी गुणरूपी कुमारी की गांठे जुड़ती हैं। इनमे प्रथम प्रकार के विवाहो का वर्णन करने वाले कई रास 'ऐतिहासिक काव्य संग्रह में संकलित है। दूसरे प्रकार के विवाहो में सबसे प्राचीन जिनप्रभसूरि का 'अन्तरग विवाह' प्रकाशित हो चुका है। उपयुक्त मुमति और वेतन दूसरे प्रकार के पति-पली है । इसी के अन्तर्गत वह दृश्य भी आता है, जबकि प्रात्मारूपी नायक 'गिवरमणी के साथ विवाह करने जाता है । अजयरान पाटणी के 'गिवरमणी विवाह का उल्लेख हो चुका है। ३. वालम तुहु तन चितवन गागरि टि अंचरा गो फहराय सरम गै छुटि ॥१॥ वालम० पिउ सुधि पावत वन मैं पैसिउ पेलि, छाडत राज डगरिया भयउ अकेलि ॥३॥ वालम० काय नगरिया भीतर चेतन भूप, करम लेप लिपटा वल ज्योति स्वरूप |वालम० चेतन वृझि विचार बरहु सन्तोष, राग दोप दुइ वन्वन छूटत मोप ॥१॥ वालम० -बनारसी विलास, अध्यात्म पद पंक्ति पृ० २२८-२२६ ४. लाई हो लालन वाल अमोलक, देखहु तो तुम कैसी बनी है। ऐसी कहूँ तिहुँ लोक मे मुन्दर, और न नारि अनेक धनी हैं । याहि तें तोह कहुँ नित चेतन, याहू की प्रीति जु तो सौं सनी है। तेरी और राधे की रीशि अनन्त जु मोप हूँ यह बात गनी है ।। -भैय्या भगवतीदाम, ब्रह्मविलास, बम्बई, १९२६ ई०, गत अप्टोत्तरी, २८वां पद्य, पृ० १४ ४०२ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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