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________________ डा० हर्मन जैकोबी और जैन-साहित्य डा० देवेन्द्रकुमार जैन एम. ए पी एच-डी. आदि काल से ही भारतीय श्रमण-सस्कृति अत्यन्त समृद्ध तथा व्यापक रही है । भारतीय तत्व-चिन्तन तथा साहित्य-रचना मे इस प्रजा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समाज, राजनीति तथा जीवन-दर्शनो के विविध पक्षो पर श्रमण-सस्कृति के पुरोहित जैनमनीषियो एव प्राचार्यों ने जिस प्रकाश को आलोकित किया है वह आज भी अपनी ज्योति से ज्योतिर्मान है । समय-समय पर प्रबल झझानो के आघात से, काल के क्रूर थपेडो से तथा जाति, समाज और सम्प्रदायो के संघर्षों मे अविचल रह कर जिन-वाणी ने जिस सत्य और अहिसा का प्रकाश विकीर्ण किया वह आज तक विश्व के इतिहास-पटल पर स्वर्णाक्षरो से जाज्वल्यमान है। प्राचीनकाल में इस देश मे भाषा, साहित्य, आयुर्वेद, ज्योतिष, कला आदि वाडमय के विविध अंगो में उत्तरोत्तर उन्नति होती रही। सभी प्रजानो ने मिलकर विभिन्न रूपो मे उनका विकास किया। जैनाचार्यों ने प्रत्येक विषय पर मौलिक चिन्तन कर साहित्य-श्री एव वाड्मय को भलीभांति समृद्ध बनाया । आज भी जैन भाण्डागारो मे जो विपुल जैन-प्रजन साहित्य तथा वाड्मय उपलब्ध होता है उसे देखकर पातो तले उगली दवानी पड़ती है। साहित्य-रचना तथा सरक्षण का जो कार्य जैन साधुओ तथा मनीपियो ने किया है वस्तुतः वह इतिहास की अविस्मरणीय तथा गौरव-गाथा ही बन गई है। भारतीय वाड्मय के सभी प्रकार से सम्पन्न और समृद्ध होने पर भी युग के युग ऐसे अन्धकाराच्छन्न प्रतीत होते हैं जिनमे विभिन्न जातियो के संघर्ष तथा उत्थान-पतन मे, राजनैतिक उथल-पुथल मे और सामाजिक एव सास्कृतिक विघटन मै प्रचुर साहित्य विलुप्त हो गया । विभिन्न भाक्रान्ताओ से पद्दलित यह देश धीरे-धीरे अपनी गौरव-गरिमा को धूमिल बनाता रहा और साहित्य के विभिन्न प्रगो की प्राय उपेक्षा-सी होती रही । जातीय-सकीर्णता तथा विभिन्न समाजो के दृष्टिकोण दिनोदिन सीमित होते गये । परिणाम यह हुआ कि हम अपने साहित्य और दर्शन से दूर होते गये । हमारी हताश और निराश भावना ने हमे दिनोदिन दुर्बल और चिन्तनीय बना दिया । अतएव उस युग में लिखा जाने वाला साहित्य भी जीवन्त समस्याओ से हट कर वास्तविक लोक-जीवन का आकलन न कर कल्पनामो तथा पौराणिक जड़ प्राकृतियो पर निर्भर रहने लगा। स्पष्ट शब्दो में हमारी मान्यताएं दिनोदिन रूढियो मे बधती गई और हम वास्तविक वातो से तथा सच्चे जीवन में बहुत कुछ दूर होते गये। इस मध्यकालीन युग के उत्तरकाल मे (मुगल काल मे) हमे अधिकतर ऐसे ही साहित्य का परिचय मिलता है । इस युग में मुख्य रूप से भारतीय पौराणिक साहित्य अधिक लिखा गया, जिसका प्रारम्भ गुप्त युग से हुआ प्रतीत होता है। गुप्त युग के पूर्व का साहित्य अत्यन्त प्रल्प तथा विरल प्राप्त होता है। भारतीय साहित्य के इतिहास में वह अन्धकारपूर्ण युग कहा जाता है जिसका प्राज तक कोई क्रमवद्ध रूप उपलब्ध नहीं हो सका [ ३६३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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