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________________ भी तोड दी है । लेकिन विटिया, प्यारी चीजें सबको हमेशा प्यारी लगती हैं। तुम्हारा सरदार तुम्हे ही नही, सारे देश को प्यारा था, वाहेगुरु को प्यारा था, इसलिए वाहगुरु को प्यारा हो गया। उसने वीरता के वे जौहर दिखाये हैं कि फरिश्ते भी उसकी नामर्दी पर ईष्यालु हो उठते । चीजें टूटने-फूटने के वास्ते ही वनी हैं । लेकिन तुम्हारी चीन इसलिए टूटी है कि देग न टूटे । तुम्हारी एक माग के सिन्दूर की जगह तुम्हारे दूल्हे ने देश की करोडो मुहागिनों की मांग मे सिन्दूर भर दिया है । तेरा बच्चा मारे देश का प्यारा बच्चा है । तेरा दुःख नारे देश का दु.ख है। हौसला कर मेरी वच्चीहौसलाकर, और अपने वहादुर पति की आत्मा को प्रणाम करके वेगक कहदे कि वह विश्वास रखे कि उसकी इज्जत और आबरू की तरफ जिस किसी ने भी प्रान्त उठाकर देखा तो मैं, तेरा वापू रस कमीने की आँखें फोड़ दूंगा।" इस सदेश का जादू का प्रभाव उस नारी पर हुआ । उसने आंमुग्री को पोछकर विखरे वालो को चेहरे पर से हटाया और तनकर बैठ गई है। उसने अपने बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर कहा-मेरा भी एक सदेश मेरे स्नेहमयी पिता तक पहुंचा दीजिये "मैं इसलिए नहीं रो रही हूँ कि जाने वाला श्यो गया? वह तो अमर हो गया। लेकिन दुःख तो इस बात का है कि मेरे मासूम बच्चे करनलसिंह की अगूरी भी नहीं फूटी। कब यह जवान होगा और कव दुग्मनो मे बदला चुका सकेगा ! मेरे आँसू तो यही वरदान मांग रहे हैं कि जल्दी बड़ा होकर मेरा करनैलसिंह भी फौज का करनैल वने।" युद्ध में जाते हुए वीर माता का सदेश-"मेरे बेटे, तुम युद्ध भूमि की ओर बले हो, दुश्मन पर विजय प्राप्त करके ही लौटना । मर जाना लेकिन मेरा दूध हराम न करना । मैं तुम्हे विजयी देखना चाहती हूं।" "ऐ मेरे देश के सिपाहियो । भगवान तुम्हारी ग्मा करे । मुझे यह पता नहीं कि तुम किस कोख के जाए हो लेकिन यह अवष्य जानता हूँ कि वीरता, पौरुष, दिलेरी और देश-प्रेम के साथ-साथ इन्सानियत, सहृदयता, उदारता, भक्ति और भक्ति के गुण तुम्हारे रक्त में मौजूद है। तुम्हारे रक्त के मिंचन ने बर्फ में भाग के फूल खिला दिए है । जहाँ नग्न वृक्षो का शरीर छिरठिठुर कर जम जाता हूँ वहां तुम अग्नि-स्तम्भ बनकर खड़े हो।" हिन्द का जवाहर महात्मा गांधी पंडित जवाहरलाल हर तरह मुयोग्य हैं । उन्होंने वर्षों तक अनन्य योग्यता और निप्पा के साथ महासभा (कांग्रेस) के मंत्री का काम किया है। अपनी बहादुरी, दृढ़ संकल्प, निष्ठा, सरलता, सच्चाई और धैर्य सपर्क में आये हैं । यूरोपीय राजनीति का जो मूक्ष्म परिचय उन्हें है, उससे उन्हें स्वदेश की राजनीति को समझने और निर्माण करने में बड़ी सहायता मिलेगी। जिन्हें यह पता है कि जवाहरलाल का और मेरा मम्बन्य है, वे यह भी जानते हैं कि वह सभापति हुए तो क्या और मैं हुआ तो क्या ! विचार या बुद्धि के लिहाज मे हममै मतभेद ३५० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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