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________________ भारत आभार जननि आभार धात्री आभार देश। उनके गीतो मे सम्पूर्ण भारत की एकता की भावना मुखरित हुई - जे दिन सुनील जलधि होई ते उठिले जननी भारतवर्ष । उठिल विश्वेसे कि कलरव से कि मा भक्ति से कि मा हर्प। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कवितामो मे राष्ट्रीय एकता की भावना और अधिक स्पष्ट और गहन हो उठी है : मातृ मन्दिर पुण्य अगन कर महोज्ज्वल आज है। जय नरोत्तम पुरुष सत्य जय तपरूपी राज है। उन्होने उसी गीत मे समग्र भारतवासियो को आह्वान किया : ऐश दुर्जय गक्ति सम्पद मुक्त बंध समाज है। ऐग जानी ऐश की नाग भारत लाज है ॥ आगे चलकर भारत के वीर धर्म को भी जाग्रत किया . ऐश तेजः सूर्य उज्ज्वल कीति अन्तर माझ है । वीर धर्म पुण्य कर्मे विश्व हृदये राज है। एक दूसरे गीत में उन्होंने भारत की मेरी सारे ससार में बजाने का आह्वान किया है : देश देश नन्दित करि मन्द्रित तव भेरी। आसिल सव वीर वृन्द आसन तव घेरी ॥ भारत की सव जातियों और प्रान्तो की एकता की भावना हमारे राष्ट्र-गीतो मे "जनमन" मे जितनी प्रबल है उतनी कही नही । जुग जुग तव आह्वान प्रचरित सुन उदार तव वाणी। हिन्दू वौद्ध सिक्ख जैन पारसिक मुसलमान क्रिस्टानो। पूरव पश्चिम आसे । तव सिहासन पासे । उन्होने 'मानव तीर्थ' नामक कविता में माता के अभिषेक के लिए सभी देशवासियो को एकत्व होने का आह्वान किया गया है . आओ ब्राह्मण श्रुतिकर निजमान गहो सभी का हाथ । आयो पार्तत हटायो सवही तव अपमान अश्राद्य ।। मम अभिपेके करो तुम त्वारा, मंगल घट यह धरा है भरा। सकल स्पर्ग से पुनीत करके तीर्थ सुनीरे, भारत मानव सागर तट के निर्मल तीरे-तीरे। २.]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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