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________________ की शाकाहारी सोसायटियो ने अत्यन्त सुन्दर अब्दो में प्रेरणादायक स्फूर्तिवत शब्द लिने जिन्हे पढ़ने पर प्रतीत होता है कि यदि शक्तिशाली और व्यवस्थित ढग से शाकाहारी आन्दोलन चलाया जाय तो निःसदेह सफलता प्राप्त हो सकती है। | प्रिय बन्धु, आपका कृपापत्र प्राप्त हुआ । धन्यवाद ! आपने अपने जीवन मे जो अनेक जन-कल्याण के कार्य किये उनमे शाकाहार की महत्ता प्रचारित करने का आपका यह सकल्प सर्वश्रेष्ठ है । इस पुनीत लोकोपकारी शुभ कार्य में मेरा पूर्ण सहयोग आपको निरन्तर उपलब्ध होता रहेगा। भारत ससार का अनेक क्षेत्रो मे गुरू माना जाता रहा है। आज हमे अपने उस गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए सासारिक कल्याण के ऐसे शुभ कार्यों में अधिकाधिक योग प्रदान करना ही चाहिए जिससे प्राधुनिक मनुष्य का मस्तिष्क सन्तुलित होकर अध्यात्मवाद की ओर अग्रसर हो सके। निरामिप पाहार के प्रचार, वृद्धि और शिक्षण के अतिरिक्त राजधानी मे सम्मानित विदेशी अतिथियो के लिए किसी ऐसे विश्रामग्रह की भी योजना बनानी होगी जहाँ वे विशुद्ध भारतीय संस्कृति के अनुरूप भाकाहार का आनन्द ले सकें। आप मुझे अपने समाज के सरक्षण सदस्यो मे महपं मम्मिलित कर सकते हैं। आपका शुभचिन्तक, रामनाथ कालिया भारतवर्ष में कई सोसायटिया इस सम्बन्ध में प्रशसनीय कार्य कर रही है। उनमे The Bombay Humanitarian League मुख्य है जिसकी स्थापना वम्बई मे श्रीमान माननीय दयालकार श्री लालूभाई जव्हेरी ने की थी जिसका प्रधान कार्यालय १४६, जौहरी बाजार बम्बई न० २ में है। आजकल जिसके प्रमुख संचालक श्रीमान् सेठ जयन्तीलालजी मानकर साहव है। इसी प्रकार दूसरी सोसायटी-भारत वेजिटेरियन सोसायटी, ११६ सुन्दरनगर, नई दिल्ली में है जिसके सेक्रेटरी श्री अमृतलालजी जिन्दल है । इसी प्रकार बम्बई, सौराष्ट्र और आंध्र प्रदेश मे कई पिंजरापोल सोसायटिया है जो पशुरक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करती है। रीवा, सतना, मध्यप्रदेश से शाकाहारी त्रैमासिक पत्र का प्रकाशन होता है जिसके सम्पादक श्री पन्नालालजी है जो शाकाहार के सम्बन्ध में उल्लेखनीय कार्य कर रहे है। पावश्यक हो कि शाकाहार पशुरक्षा, गोरक्षा, जीवदया सम्बन्धी आन्दोलन विभिन्न प्रांतो में उत्साही कार्यकर्तामो द्वारा मिलकर संगठित होकर चलाया जाय ताकि वैज्ञानिक ढग मे । इसका संचालन हो और सही रूप से पूर्ण सफलता मिल सके। जैन समाज के उदीयमान युवक श्री प्रेमचन्दजी जैना वाच कम्पनी ने दि० जैन लाल मदिरजी पर अहिंसा प्रचार ममिति स्थापित की है। जिसने प्रशसनीय कार्य किया है तथा जो उत्तम काम कर रही है। ३०० 1
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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