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________________ स्याद्वाद महाविद्यालय, भदैनीघाट और उसका जीर्णोद्वार पूज्य न्यायाचार्य श्री १०५ गणेशप्रसादजी वर्णी श्रद्धेय पूज्य वर्णोजी अध्यात्मज्ञान के भडार थे । विद्वानो के अनन्य प्रेमी और धार्मिक शिक्षा के प्रचार में आपकी अपूर्व रुचि थी । उन्होने अपने जीवन में १०० से अधिक शिक्षण संस्थाएं स्थापित कराई। उनका सभी वर्ग के स्त्री-पुरुषो पर श्रद्भुत प्रभाव पड़ता था । स्याद्वाद महाविद्यालय तो उनके लिए पुत्र के समान था जिसका सरक्षण जीवन पर्यन्त करते रहे। जब गंगाजी की प्रबलधारा विद्यालय के भवन को भस्मसात करने लगी और उस पर बने हुए भ० पार्श्वनाथ के जिनमन्दिर तथा विद्यालय के सुन्दर भवन को खतरा हो गया तो उनसे देखा न गया और इसके लिए उन्होने अथक परिश्रम किया । जब उन्हे लाला तनसुखरायजी का पता चला कि उनके मित्र चीफ इंजीनियर पद पर सुशोभित है तो उन्होने इस सम्बंध में कई महत्वपूर्ण पत्र लालाजी को लिखे जिनमे विद्यालय की रक्षा का भाव स्पष्ट है। लालाजी ने और इजीनियर साहब ने इस सम्बन्ध मे जो उल्लेखनीय प्रयत्न किया वह उनकी स्वर्णाक्षरो मे लिखने योग्य प्रशंसनीय सेवा है। इसका सारा श्रेय वर्णीजी को है जिनकी भक्ति से प्रेरित होकर भदैनीघाट का पुननिर्माण हुआ । वर्णीजी के अभाव से देश का एक दैदीप्यमान लोकप्रिय मार्गदर्शक आध्यात्मिक रत्न aiगया जिसकी पूर्ति होना कठिन है । प्राए हुए पत्रो मे से वर्णीजी का एक पत्र अविकल दे रहे है । त्याग यात्र हो पत्र प्राया आप का परिश्रम जोर्ट के अब में अत्यन्त स्ताध्य है यदि इंजिनियर साहब कैसे यू.पी वाली - घार इसी वर्ष वन जाता - परन्तु मोल नहीं प्रारम्भ हो जावें फिर " ही जविगाह में आप को कोटिशः प्राशीर्वाद देते हैं जो आप में इसपूर्व काम किया- कलकत्ते से अमी उत्तर नहीं आया-खाय निर जन्म रहे जंगल कहीं जाने अपने को भ्रमणपर रहना चाहिए ५. भूतक वैशाललहिदू ༩༢༠༥༢ गोश धर्ती [ २९३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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