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________________ हुई है। जैन समाज अपने अधिकारों को भूल गया, स्वाभिमान जाता रहा, शक्ति क्षीण हो गई, रगो मे से वीरता का रक्त लुप्त हो गया। जिसके वीरो से ससार कपकपाता था, जिस जाति के वीरो ने जैन धर्म की ध्वजा ससार भर मे फैहराई थी आज वह जाति नपुसक और कायर कहलाए और उसके धर्म को घृणा की दृष्टि से देखा जाय, कितने खेद की बात है। किसी समय मे जैन वीर और महात्मा के नाम से पुकारे जाते थे आज उनको बनिया और वकाल मे नाम से पुकारते है । वास्तव मे जैन धर्म वीरो का धर्म था। राजपूतो और क्षत्रियों ने इसे अपनाया था । जितने भी हमारे तीर्थकर हुए है लगभग सभी राजपूत या क्षत्रिय वश से ही उत्सन्न हुए है । पहले समय मे जैनो का केवल एक घधा व्यापार ही नहीं था, जैनियो मै सेनापति, राजा-महाराजा, चक्रवर्ती राजा और कोपाध्यक्ष हो चुके है । श्री भामाशाह जैसे धनकुवैर और चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे वीरो का नाम आज तक ससार मे विख्यात है और गौरव के साथ लिया जाता है । यह जैन समाज के नर रल थे । यह युग सगठन का युग हे । इस युग मे वही ममाज जीवित रह सकता है जो सगठित, वलवान और गक्तिगाली होगा । आज हम इस जगह जिस उतम कार्य के लिए एकत्रित हुए है, वह चीज उन महापुरुषो की बनवाई हुई है जिन्होने पावू पर्वत के आस-पास की दिलवाडा की भूमि पर करोडो रुपए का मोना और चादी विछाकर अपनी तलवार के बल पर जगत विख्यात मदिर बनवाये थे । हमारा धर्म और कर्तव्य है कि हम उनके बनाए हुए स्मारक को कायम रखने के लिए हर प्रकार का त्याग करे । यह हमारे लिए वर्ण अवसर है । यदि हम सगठित होकर कुछ कर गए तो जैन जाति का गौरव वढेगा यदि हमने कुछ नहीं किया तो आने वाली सताने हमे धिक्कारेगी, कहेंगे कि हमारे पूर्वजो से अपने मदिरो की भी रक्षा न हो सकी। इस कान्फ्रेंस मे प्रण करो कि तन, मन, धन से इस कार्य को पूरा करेगे। मुझे पूर्ण आशा है कि हमे अवश्य सफलता मिलेगी। अन्त मे आप महानुभावो का में अत्यन्त आभार मानता हूँ कि आप सवने मुझे यह मान दिया जिसके कारण आपके दर्शनी का लाभ हुा । हम सवका यहा एकत्र होना तभी सफल होगा जवकि हम इस अवसर पर तमाम साम्प्रदायिक भेदभावो को दूर करके एक शक्तिशाली समिति का निर्माण करें जो सारे देश मे सगठन के कार्य को अपने हाथ मे ले । इस समिति के बनने से तमाम कार्य पूर्ण हो जायेगे । मै आशा करता हूँ कि आप अवश्य मेरी इस प्रार्थना पर ध्यान देगे और इस कार्य को सफल बनाने मे प्रयत्नशील होगे । दुर्भाग्य जैन समाज तेरा क्या दशा यह हो गई। कुछ भी नही अवशेष, गुण-गरिमा सभी तो खो गई ।। क्या पूर्वजो का रक्त प्रव तेरी नसो मे है कही ? सब लुप्त होता देख गौरव जोश जो खाता नही । पूर्वज हमारे कौन थे, वे कृत्य क्या-क्या कर गये । किन-किन उपायो से कठिन भवसिंधु को भी तर गए ।। [२८७
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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