SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का व्याख्यान हुआ। पश्चात इस सभा के सभापति कर्मवीर लाना तनसुखरायजी का सारगमित व्याख्यान हुआ। इसके बाद अखण्ड जैन परिपद् के स्वागताध्यक्ष श्री० सेठ हीरालाल जी काला का भाषण हुमा और फिर इस परिषद् के सभापति उत्साही श्रीमान् हेमचन्द्रजी जन चेयरमेन मर्कन्टाइल एसोसियेशन देहली का व्याख्यान हुआ। डा० नन्दकिशोर सा० ने जैन समाज के अलग-अलग फिरकावदी व जैन समाज की दुर्दशा के ऊपर बडा ही सारगर्भित भाषण दिया । अन्त मे प. रामलालजी का जोशीला व्याख्यान होकर आज की कार्यवाही समाप्त हुई। प्रात काल ठीक ६ वजे समापतिजी के स्थान सब्जेक्ट कमेटी की मिटिंग हुई जिसमे चार प्रस्ताव पेश हुए और उनके ऊपर चर्चा की गई। दोपहर को पडाल मे खुला अधिवेशन हुआ। प्रारम्भ में मगलाचरण के बाद बाहर के पाए हुए करीव १५० सदेश सुनाये गए । इन सदेशो को देखते हुए कहा जा सकता है कि जनता की सहानुभूति अधिक से अधिक दिखाई देती है। इसमे जैन व जैनेतर बडे-बडे धनीमानी व विद्वानों के सदेश है। प्रस्तावको ने प्रस्ताव पेश किये और उनके ऊपर जोशिले व्याख्यानो के द्वारा उनका अच्छा विवेचन किया इसी प्रकार समर्थक व अनुमोदको ने भी खूब जोरदार भाषणों के द्वारा विवेचन किया। तमाम प्रस्ताव सर्वानुमत से पास हुए । प्रस्ताव अन्यत्र प्रकाशित किए गए है। इसमे श्रीमती लेखवती जैन, पुखराज जी सिंधी, डॉ. नन्दलालजी, धर्मचन्दजी सुराणा, राजमलजी लोढा सपादक जैन ध्वज मजमेर, १० रामकुमार जी, ५० रामलाल जी, चिमनसिंह जी लोढा, देवीचन्दजी जैन, मुकुट बिहारीलाल जी भार्गव आदि के बहुत ही मनोहर व्याख्यान हुए।' ब्यावर का भाषण जो स्यादवाद् मयक के प्रतिभा मई छवि धाम है। जो रिद्ध सिद्ध प्रकाणदायक बदनीय ललाम है ।। नित प्रात तिनके स्मरण से होता अपूर्व ललाम है। उन महावीर जिनेश को श्रद्धा समेत प्रणाम है । यादरणीय बन्धुप्रो तथा माताओ और बहनो। इस समय जैन जाति की दशा अति शोचनीय है । हमारे पास सब कुछ होते हुए भी हम अपने देश मे अपना व्यक्तित्व कायम नही रख सकते । युद्ध भारत के द्वार पर आ गया है। संसार की स्थिति डांवाडोल है, इस समय प्रत्येक कार्य को बहुत सोच-समझकर करने की प्रत्यत आवश्यकता है। आज हम इस बात पर विचार करने के लिए एकत्रित हुए है कि हम जाति के पान, गान तथा अपने पूर्वजों के बनाए हुए धर्मस्थानो और स्मारको को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy