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________________ मन्दिर बनवाये थे । हमारा धर्म और कर्तव्य है कि हम उनके बनाये हुए स्मारको को कायम रखने के लिए हर प्रकार का त्याग करे। यह हमारे लिए सुवर्ण अवसर है । यदि हम सगठित होफर कुछ कर गये तो जन-जाति का गौरव बढेगा । यदि हमने कुछ नहीं किया तो आने वाली सताने हमे धिक्कारेंगी, कहेगी कि हमारे पूर्वजो से अपने मन्दिरो की भी रक्षा न हो सकी ।" इन शब्दो के साथ अखिल भारतीय प्रावू टैक्स विरोधी सम्मेलन के सभापति लाला तनसुखराय जैन ने अपना प्रभावशाली भापण समाप्त किया । टैक्स का विरोध करते हुए आपने कहा-पावू के जैन मन्दिरो के विषय मे समाचारपत्रो मे काफी प्रकाश डाला जा चुका है। आज तो यही निर्णय करना है कि क्या हम इसी तरह से इन मन्दिरो पर प्रतिदिन नए-नए टैक्स देते रहे और एक दिन ऐसा आए कि टैक्स तथा वन्धन इस कदर बढ जावे कि साधारण भाइयो को इन मन्दिरो मे पूजन-प्रक्षाल तो क्या दर्शन करना भी दुर्लभ हो जाये ?" उपाय--सत्याग्रह आखिरी सीढी इन अनुचित टैक्सो को कैसे दूर कराया जाय, इसके विषय मे मैं अपने विचार समाचारपत्रो मे पहले प्रकट कर चुका हूँ। मेरे पास बहुत से पत्र आये जिनमे मेरे भाइयो ने सत्याग्रह करने की सम्मति दी है । इस विषय में मेरी सम्मति यह है कि सबसे प्रथम आवश्यक है कि तमाम सम्प्रदायो के जैनो की एक शक्तिशाली समिति बनाई जाय जो इस काम को अपने हाथ से ले। इसके द्वारा स्थान-स्थान पर स्थानीय समितिया बनाई जाये ताकि काम सुचारु रूप से प्रारम्भ किया जाय । इसके पश्चात् समाज के धनी-मानी महानुभावो का एक डेपुटेशन राज्य के अधिकारियो से मिले और उनसे प्रार्थना करे कि वह अनुचित टैक्सो को कम करे । यदि डेपुटेशन को सफलता न हो तो फिर सारे देश में इसका आन्दोलन किया जाए और एक दिन नियत करके विरोधी सभायें की जाये । उस दिन प्रस्ताव पास किये जाये और उनकी प्रति रियासत तथा सरकार के पास भेजी जायें। यदि इससे भी कुछ सफलता न हो तो फिर अन्तिम योजना सत्याग्रह की रह जाती है जिसके लिये मेरे मित्रो ने भी हैदराबाद के आर्य सत्याग्रह का उदाहरण देकर, हमे भी उसका अनुकरण करने के लिये लिखा है। परन्तु हमे इसमे जल्दी नहीं करनी चाह्येि । हैदरावाद तथा भागलपुर के मोर्चा का जिक्र एव उनकी सफलता के साधनो पर प्रकाश डालते हुए, अन्त में पापने संगठन की शक्ति पर बल दिया। सम्मेलन की कार्यवाही पावू मुडका विरोधी यह सम्मेलन गत २३ जनवरी सन् १९४२ को बडे उत्साह से व्यावर मे हो गया । श्री तनसुखराय जैन (देहली) सभापति थे । वहाँ आपका शानदार जुलूस निकला । रात को व दूसरे दिन कार्यवाही हुई। इस सम्मेलन मे श्रीमती लेखावती जैन भूतपूर्व एम० एल० ए० (पजाव), श्री अजितप्रसाद जैन, सेठ हीरालाल जी काला, ला. हेमचन्द्र जी जैन, डाक्टर नन्दलाल आदि जैन नेतानो के भाषण हुए । निम्न चार प्रस्ताव पास किये गये । [ २५१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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