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________________ कुशल व्यवसायी तिलक बीमा कम्पनी की अपूर्व सफलता लाला तनसुखराय जैन एक प्रसिद्ध समाजसेवी और देशभक्त कार्यकर्ता ही न थे, बल्कि कुशल व्यवसायी भी थे । यूरोप मे वैज्ञानिक ढंग से व्यवसाय का भी सचालन किया गया। नएनए व्यापार के साधनो को अपनाया गया । फलस्वरूप व्यवसाय का क्षेत्र अधिक व्यापक हुआ र समृद्धि का विशेष सूत्रपान हुआ । आधुनिक व्यापारो मे बीमा व्यवसाय भी ऐसा ही एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है । सहयोग और वृद्धावस्था में एकमात्र सहारा देने के लिए यह एक उत्तम सूझ है । भारतवर्ष मे जब इसका प्रारंभ हुआ तब इतनी विशेष रुचि जनता मे नही थी परन्तु अव प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति इसके महत्व को समझना है। और अपना बीमा कराना आवश्यक समझता है । इस व्यवसाय में छाने वाले व्यक्ति मे अनेक गुणो की ऐसी आवश्यकता है जो अपने प्रभाव, वाणी और धैर्य के वल पर व्यक्ति का मन मोह ले और बरबस उसे अपनी और प्राकर्षित करने के लिए बाध्य कर दे । ला० तनसुखराय जी कर्मठ थे । वाणी के धनी थे । और अनवरत कार्यं मे तब तक लगे रहते थे जब तक सफलता न मिल जाए। वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे । परापेक्षी और दूसरो का सहारा लेने वाले नही थे । स्वावलम्बी, साहसी और कर्तव्यनिष्ठ थे । उन्होने राष्ट्रीय भावना से श्रोत-प्रोत होकर स्वनाम धन्य महामनीषी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की पुण्य स्मृति मे 'तिलक बीमा कम्पनी' की स्थापना की। उन्होने सस्था का कार्य इस प्रकार बुद्धिमानी, विवेकशीलता और सहयोग से प्रारम्भ किया कि थोड़े ही समय मे सस्था की आशातीत उन्नति हुई। इससे मूलबन बढ गया । उसकी प्रतिष्ठा चोगुनी हो गयी। सभी प्रमुख व्यवसायी पुरुषो का ध्यान इसकी और प्राकर्षित हो गया । इस सस्था को उन्नत बनाने का श्रेय लालाजी को और उनके कर्तव्यपरायण सहयोगियों को ही है । सस्था की एक वर्ष की प्रगति का दिग्दर्शन करना श्रावश्यक है जिससे विदित होता है कि लालाजी कितने सूझ-बूझ और कर्मवीर, साहसी - पुरुष 1 तिलक बीमा कम्पनी के लिये लोकमत क्या कहता है तिलक बीमा कम्पनी भारत की प्रसिद्ध प्रगतिशील राष्ट्रीय कम्पनी है। उसकी प्रथम वार्षिक रिपोर्ट हमे समालोचनार्थ प्राप्त हुई है। उसके देखने से प्रकट होता है कि उक्त कपनी १० लाख के मूलधन से स्थापित हुई है । ३० जून सन् ३८ को इसका प्रथम वर्षं बडी सफलतपूर्वकपूर्ण हुआ है । यह कम्पनी एक उच्च आदर्श और लोकहित के सन्देश को लेकर कार्य क्षेत्र में उतरी है, उसका मूल उद्देश्य भारत की प्रार्थिक स्थिति को वैज्ञानिक ढंग से उन्नत करना तथा भारत की बढती हुई बेकारी को दूर करना है । २५४ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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