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________________ हिन्दोस्तां हमारा क्या पूछते हो हमसे नामोनिशा' हमारा ? मालिक है हम जमी के है आस्मा हमारा ॥१॥ भारत पै जान देगा इक इक जवा हमारा । ऐ चर्ख ले रहा है क्या इम्तहां हमारा ? ॥२॥ लडते है हक की खातिर हक है हमारा हामी । हम पासवारे हक है हक पास्वा हमारा ||३|| दुश्मन की सारी शेखी अब खाक मे मिलादो। देखें तो क्या करेगा दौरे जमा हमारा ॥४॥ क्या जिक्र मालो जर का तन और मन से अपने । बहरे वतन है हाजिर खुरखोकला हमारा ॥५॥ बागे जहा मे खिलकर दिखलाऐ रग क्योकर । दुश्मन बना हुआ है खुद बागवा हमारा ॥६॥ ए 'दास' हो न जाए बरबाद अपनी मेहनत । सम्याद की नजर मे है आशिया हमारा ॥७॥ विद्या जीवन की दिशा है, जिसे पाकर मनुष्य अपने इष्ट स्थान पर नहीं पहुंच पाता। चरित्र जीवन की गति है । सही दिशा मिल जाने पर भी गति-हीन व्यक्ति इष्ट स्थान पर नही पहुँच पाता । सही दिशा और सही गति दोनो मिलें, तव काम बनता है। __ सेवा का सबसे पहला कदम अपनी जीवन-शुद्धि है। यह आत्म-सेवा है, जिसके बिना जन-सेवा बन नही सकती। १ चिन्ह २ आसमान ३ न्याय, सच्चाई ४ तरफदार ५ ससार-चक्र ६ देश के खातिर ७ छोटे-बडे ८ वाग का माली ९ वुलवुल का पकड़ने वाला।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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