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________________ देश की रक्षा और एकता के लिए जबकि भारतवर्ष के सभी सम्प्रदाय, जातियां और राजनैतिक दल एक प्लेटफार्म पर एकत्रित हो सकते है तो कोई कारण नही कि एक धर्म के मानने वाले दि० जैन भाई अपने धर्म और समाज की उन्नति और रक्षा के लिए क्यो नही एक प्लेटफार्म पर एकत्रित हो सकते ? मुझे आशा है कि दि० जैन समाज के अग्रगण्य महानुभाव यदि इस ओर ध्यान देंगे तो अवश्य सफलता मिलेगी । श्रावकशिरोमणि साहू शातिप्रसादजी जैन - सर सेठ भागचन्दजी सोनी — जैनरत्न भैया साहब राजकुमार सिंह जी जो पहले से ही प्रयत्न कर रहे है उनसे मेरा नम्र निवेदन है कि वह अपने प्रयत्नो को चालू रखे । और एकता की योजना में उलट-फेर करके कोई न कोई नया रास्ता जरूर निकाले । इस समय समाज की परिस्थिति बड़ी गम्भीर तथा शोचनीय है, आप सब इसका सरक्षण करे । I 邂 भगवान् महावीर और उनके संदेश ईसा पूर्व पाचवी - छठी शताब्दी में विदेह देश की राजधानी वैशाली ( वसाढ के निकट ) गडक नदी के तट पर क्षत्रिय कुण्डग्राम धौर ब्राह्मण कुण्डग्राम दो सुन्दर नगर स्थित थे । इन्ही दो नगरो मे से प्रथम नगर क्षत्रिय कुण्डग्राम मे ईसा से ५६६ वर्ष पूर्व, यहा के गणराजा सिद्धार्थ के घर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था । वैशाली का गणराज्य बहुत शक्तिशाली था । यहा गणसत्तात्मक राज्य की व्यवस्था प्रत्येक गण के चुने हुए नायको के सुपुर्द थी। यह 'गरण राज्य' कहे जाते थे । राजा तो नाम मात्र का होता था और वह राज्य का शासन सदैव गणनायको की सम्मति से ही करता था। उस समय चेटक वैशाली का बलशाली शासक था । वह ९ गण राज्यो का अधिनायक था । इन्ही चेटक की बहिन त्रिशला का विवाह कुण्डग्राम के गणराजा सिद्धार्थ से हुआ था । जन्म-समारोह अपने घर पुत्र जन्म का समाचार पाकर सिद्धार्थ की खुशी का ठिकाना न रहा । पुत्रोत्पत्ति के हर्पं मे क्षत्रिय कुण्डग्राम मे दस दिन तक अपूर्व समारोह मनाया गया । कर माफ कर दिया गया, श्रमण सतो को दान मान से सम्मानित किया गया, श्रानन्द और उत्साह की सीमा न १५६ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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