SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत जैसे देश धर्मपरायण अहिंसाप्रिय देश मे जहा की जनता शाकाहारी हो और अहिसा को धार्मिक सिद्धान्त मानती हो, पशुहत्या और मास के व्यापारी को पाप समझती हो वहाँ मास खाने और बूचडखाने खुलवाने का सरकारी स्तर पर प्रयास करना उचित नहीं, इससे जनता के हृदयो पर गहरी ठेस पहुचती है । भारतवर्ष में इस समय जनता का राज्य कहा जाता है। भारतवासियो रामराज्य का स्वप्न देखनेवालो, अहिसा-प्रेमियो और दया धर्म के मानने वालो, जरा जागो और पशुहत्या को बन्द कराने के लिए जनमत तयार कराओ, घोर विरोध करो और देश को तबाही से बचानो। १००८ भगवान महावीर स्वामी के अनुयायियो और अहिंसा धर्म के मानने वालो । पशुनो की घोर हत्या वन्द कराकर, देश को समृद्धिशाली सुख और शान्ति का धाम बनाइये और अहिंसा परमोधर्म का भाण्डा फहराइये । वध-योजना ६ घटे में ६०० भेड़-बकरियां ३०० गाय-बैल-भैस और १०० सुनरो का वध विनाश के गर्त में जिस देश मे कभी दूध की नदियाँ बहती थी प्राज उस देश के नन्हे-मुन्ने बच्चो के लिए पूरा दूध भी पर्याप्त नही । पशुधन जो कि भारतवर्ष की सबसे बडी सम्पत्ति मानी जाती थी उसके सर्वनाश के लिए भारतवर्ष में बडे-बडे बूचडखाने खोले जा रहे है और मास का प्रचार सरकारी स्तर पर हो रहा है । देश जब गुलाम था तो भारत की जनता ने सब प्रकार के कष्ट सहन किये और देश को स्वतन्त्र कराया । हजारो नवयुवको ने आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी और फासी के तस्तो पर लटक गए । सबके मन में यही उल्लास था कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् रामराज्य स्थापित होगा । सबको पेटभर खाना और वदन ढाँपने को वस्त्र मिलने लगेगा। देश मे पशुधन की रक्षा होगी और दूध की नदियां बहेगी । परन्तु आज वह सब बातें स्वप्न हो गई है। खाद्य पदार्थों तथा वस्त्र के भाव दिन-प्रतिदिन तेज होते जा रहे है । भारत का पशुधन बहुत तेजी के साथ कम होता जा रहा है। ___ दुर्भाग्यवश स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश के कुछ राष्ट्रीय नेताओ के मस्तिष्क मे पश्चिमी सभ्यता ने घर कर लिया है वह हर कार्य को उसी दृष्टि से देखते है और विदेशो
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy