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________________ जो लोग धर्म के नाम पर और जीभ के स्वाद के लिए जीवो की हत्या करते थे, उन्हे युक्तियो द्वारा तथा धर्म उपदेशो द्वारा समझाया था, उनकी अमृतवाणी का लोगो के हृदय पर गहरा प्रभाव पडा और उन्हे सही मार्ग दिखाई दिया और किसी भी प्रकार की हत्या न करने का प्रण लिया | भगवान महावीर स्वामी के पद उपदेशो से दुष्ट, दुराचारी और पापियों के हृदय के पट खुल गये । उन्हे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ, वह सब भगवान महावीर स्वामी की शरण मे प्राये और सब प्रकार के व्यसनो को त्यागने की प्रतिज्ञा की। चारो ओर सुख और शान्ति की लहर दौड गई । प्राणीमात्र ने सुख और शान्ति की सास ली । भारतवर्ष की दशा प्राज फिर वैसी ही है जैसी कि २५०० वर्ष पूर्व थी, आज देश मे अनुसन्धान के नाम पर विदेशो मे पशुओ की खाल, हड्डियाँ, तात यदि निर्यात व जीभ के स्वाद के लिए हजारो पशुओ की हत्या प्रतिदिन हो रही है। मॉस के कल्पित गुण बताकर उसके खाने और वूचडखाने खुलवाने का विचार सरकारी स्तर पर हो रहा है । इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि इससे पहले भारतवर्ष मे किन्ही भी देशी या विदेशी शासको ने मास खाने और बूचड़खाने खुलवाने का प्रसार सरकारी स्तर पर नही किया । भारत सरकार के सामने मास उत्पादन की जो योजना इस समय है उसका ब्यौरा जो हमे प्राप्त हुआ है वह इस प्रकार है । कई करोड़ मन मास उत्पादन का प्रोग्राम है । प्राकडे प्रति हृदयविदारक है समय १६६१ से १६६६ तक १९६६ से १९७१ तक १९७२ से १९७६ तक १६७६ से १६८१ तक गोमास का उत्पादन | अन्य पशुओ के मास मनो मे का उत्पादन ११८७५००० ३६३७५००० ६६५६२५०० ७१२५०००० २१५३७५०० २५६७५००० ३२४६२५०० ४४२७५००० सर्व प्रकार के पशुओ के मास के उत्पादन का योग ३२४१२५०० ६५०५०००० १०२०२५००० ११५५२५००० मास बाज़ार रिपोर्ट १६५५ मे भारत सरकार ने बम्बई, मद्रास, कलकत्ता, दिल्ली, कानपुर, हैदराबाद, लखनऊ, वगलौर, पटना, आगरा मे बूचडखाने खोलने की सिफारिश की है। देवनार (बम्बई) मे इसका श्रीगणेश होने वाला है । यदि देश की जनता ने इसके बन्द कराने का विरोध नही किया यो देश के सभी बड़े नगरो मे बूचडखाने खुल जायेंगे, असख्य पशुओ की प्रतिदिन हत्या हुआ करेगी और देश वरवाद हो जायगा । हमारे धर्मशास्त्रो मे लिखा है। --- यस्मिन् देशेभवेत् हिंसा, या पशूनाम नागसाम् । स दुभिक्षादिभिनित्ये, अन्योपद्रव तथा ॥ "जिस देश मे निरापराध पशुओ की हत्या होती है, वह देश अकाल, महामारी और अन्य उपद्रवो से पीडित होकर नाश हो जाता है ।" [ १६१
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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