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________________ विठलाने अथवा समानता उत्पन्न करने की चेष्टा करें, तो जहाँ हमारा भरना और हमारे समाज का लाभ होगा वहाँ हम दूसरो के लिए भी हितकर हो सकेगे। हमारी प्राचीन सफलताओ से प्रभावित होकर सारा समार हमसे न जाने क्या मात्राएं लगाये बैठा है। वह सदैव प्रतीक्षा करता रहेगा अथवा हम उसकी शाशा की पूर्ति का साधन वन सकेगे, यह बात बहुत कुछ हमारी करनी पर निर्भर करती है । ढाई हजार वर्ष पूर्व का महान क्रांतिकारी विश्वोद्धारक भ० महावीर आज से तीन हजार वर्षं पूर्व के उस युग की तनिक कल्पना कीजिए, जिसमे वलिदानो का बोलवाना था । जिह्वा के रसास्वादन और उदरपूर्ति के लिए आज भी जीवो की हत्या की जाती है, किन्तु उस युग की बात और ही थी । सव इस प्रकार के कर्म धर्म के नाम पर किये जाते थे । धर्म के नाम पर घोडो और अन्य पशुओ को काट कर उनसे यज्ञ सम्पन्न किये जाते थे । नर बलि तक की प्रथा का उस युग मे प्रचलन था । मनुष्य और मनुष्य के बीच भीषण असमानता उस युग की एक अन्य वस्तु थी । मनुष्यो को विभिन्न श्रेणियो मे वांटा जा चुका था। इनमे दास और शुद्र जैसी कुछ ऐसी श्रेणिया भी थी, जिन्हे मनुष्य स्वीकार न कर पशुओ से भी बुरा समझा जाता था । इन लोगो से हर प्रकार का श्रम कराया जाता था और इसके बदले मे इनसे पूर्ण दुर्व्यवहार किया जाता था । स्त्री-जाति अर्थात् जननी और मा की दशा भी उस युग में निम्न स्थिति में थी । ब्राह्मण धर्म के प्रचार के साथ स्त्रियो की शिक्षा पर बन्धन लगा चुके थे । वेदादि की शिक्षा महिला वर्ग को नही दी जाती थी । उच्च शिक्षा के अभाव मे स्त्री जाति से शिक्षा का बीरे-धीरे लोप हो रहा था । इस अन्धकारपूर्ण युग का पूरा विवरण ऐतिहासिक छान-बीन मे उपलब्ध नही । तथापि उपरोक्त तथ्यो को सम्मुख रखते हुए स्थिति की भीषणता का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है । इस अनुमान से यह बात स्पष्ट है कि हमारा समाज धीरे-धीरे पतन की दिशा मे अग्रसर हो रहा था । महान् क्रान्ति का जन्म समाज को पतन के गर्त मे गिरने से बचाने के लिए एक महान् विभूति ने जन्म लिया । आकाश मे विजली की आभा सहसा ही प्रज्वलित हुई, जिसने सारे नभ मे एक क्षण के लिए [ १५७
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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