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________________ तरुण-गीत श्री राजेन्द्र कुमार जैन 'कुमरेश' आयुर्वेदाचार्य, बिलराम (एटा) तरुण | प्राज अपने जीवन मे, जीवन का वह राग सुना दे। सुप्त-शक्ति के कण-कण मे उठ | एक प्रज्वलित आग जगा दे ।। धधक क्रान्ति की ज्वाला जाए, महाप्रलय का करके स्वागत । जिससे तन्द्रा का धर्पण हो, जागे यह चेतनता प्रबनत ॥ प्राण विवशता के बधन का, खण्ड खण्ड करदे वह उद्गम । अग अग की दृढ़ता तेरी निर्मापित कर दे नव जीवन ॥ स्वय, सत्य-शिव-सुन्दर-सा हो, जन जनमे अनुराग जगादे । तरुण I आज अपने जीवन मे जीवन का वह राग सुना दे । तेरा विजयनाद सुन कॉप भूधर सागर-नभ-तारक-बल । रवि मण्डल भू-मण्डल काँपे, कांपे सुरगण-युत प्राखण्डल ।। नव परिवर्तन का पुनीत यह गूंज उठे सब ओर धोर रव । तेरी तनिक हुकार श्रवण कर काँप यह ब्रह्माण्ड चराचर ॥ तू अपनी ध्वनि से मृतको के भी मृत-से-मृत प्राण जगा दे। तरुण | आज अपने जीवन में जीवन का वह राग सुना दे। तेरी अविचल गति का यह क्रम पद-मदित कर दे पामरता । जडता की कड़ियाँ कट जाएँ, पाजाए यह ध्येय अमरता ॥ हृदतल की तड़फन मे नूतन जागृत हो वह विकट महानल । जिसमे भस्मसात् हो जाए अत्याचार पाप कायर दल ॥ तेरा खोलित रक्त विश्व कण-कण से अशुभ विराग भगा दे । तरुण | आज अपने जीवन मे जीवन का वह राग सुना दे। अपने सुख को होम निरन्तर, तू भू पर समता बिखरा दे। जिसमे लय अभिमान अधम हो, ऐसी शुचि ममता बरसा दे। सत्य-प्रेम की प्राभा से हो अन्तर्धान पाप की छाया । रूढि, मोह, प्रज्ञान, पुरातन भ्रम, सब हो सुपने की माया ॥ तू प्रबुद्ध हो, सावधान हो, स्वय जाग कर जगतजगा दे। तरुण प्राज अपने जीवन मे जीवन का वह राग सुना दे। १३० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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