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________________ बात यही पर समाप्त नहीं हुई। ग्वालियर सरकार ने चिढकर जैनियो पर मुकदमा चलाया जिसकी पैरवी का परिपद की ओर से सारा प्रबन्ध तथा व्यय उठाकर सफलता प्राप्त करने में भी बाबू तनसुखराय का ही प्रयत्न था। श्री दलीपसिंह वकील को तो कई महीनो तक निरन्तर वहां रहना पडा । लाला श्यामलाल गवर्नमेट एडवोकेट, वावू लालचन्दजी आदि वकीलो की सहायता और सहयोग आपके ही सप्रयत्नो का फल था इस प्रान्त के आसपास इससे जैनियो की काफी धाक वैठी, उनकी प्रतिष्ठा बढी और फिर किसी को जैन मन्दिर, जैन धर्म और जैनियो को अपमानित करने का हौसला नहीं हुआ। इस क्षेत्र तथा उसके आस-पास के क्षेत्र की जैन जनता उन्हे सदा वाद करती रहेगी। उनकी बाद वह कभी नही भूल सकेगी। वावू तनसुखराय को इस सम्बन्ध मे अनेको वार आना-जाना पडा, व्यवमाय की हानि उठानी पडी, कष्ट भी उठाना पडा पर मैने न कभी उत्साह मे कमी पाई और न थकान । ऐसे कर्तव्यपरायण वावूजी का असमय उठ जाना समाज की महान् क्षति है जो पूरी नही हो सकती। मुझे महगाव काण्ड के सम्बन्ध मे पूरे दो साल तक उनके साथ काम करने और साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त रहा । उस आधार पर मैं कह सकता हूं कि उन जैसे कर्मठ, क्रियाशील और उत्साही नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति समाज में बहुत कम होगे। खेद इस बात का है कि समाज उनकी योग्यता और क्षमता का पूरा लाभ नही उठा सका । वे आज से तीस वर्ष पहिले दि० जैन परिपद में पाये और उसको काफी बल प्रदान किया । वह किसी भी परिस्थिति से न घवराते थे और न हार मानते थे। साहू श्रेयासप्रसादजी जैन की अध्यक्षता में होने वाले दिल्ली अधिवेशन में रात्रि को जब ललितपुर के वा. परमेश्वरीदास जैन मन्दिरो मे हरिजन प्रवेश का प्रभाव प्रस्तुत कर रहे थे तव प्रतिक्रियावादियो के झुण्ड ने जल्से मे घुसकर पण्डितजी को धक्का देकर मच से गिरा दिया और हुल्लड मचाकर जल्सा छिन्न-भिन्न कर दिया और ऐसी परिस्थिति बन गई कि परिपद के नेताओ को भी जल्सा छोड़कर जाना पड़ा। तव बावू तनसुखराय ने हिम्मत नहीं हारी। रात्रि को घूम-फिर कर स्वयसेवको का प्रवन्ध किया और दूसरे दिन उसी स्थान पर उसी मण्डप मे , दिन के समय शान के साथ हरिजनो का मन्दिर मे प्रवेश का प्रस्ताव पास कराकर ही छोडा । • परिषद की शक्ति और वढी और प्रतिक्रियावादियो के साहस ढीले पड गये। सन् १९३४ मे दिल्ली अधिवेशन मे वे परिपद के प्रधान मन्त्री चुने गये । सन् १९३५३६-३७-३८ इन चार मालो मे परिपद के कार्यो को इतनी गति दी कि परिपद का प्रभाव देश• च्यापी हो गया । सतना और खडवा के सफल अधिवेशनो ने परिपद में एक नई जीवन-शक्ति की। परिषद का कार्य उन्होने खूब बढ़ाया और मरते दम तक परिपद के हर कार्य मे वे सदा सहायक रहे। जैन समाज की ओर परिषद को उनके न रहने से काफी हानि उठानी पड़ी है । परिपद के कार्य को आगे बढ़ाने में उन्होने उनका सदा साथ दिया। उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में बडा योगदान देकर जैनियो का मस्तक कचा किया है। काग्रेस के एक कर्मठ कार्यकर्ता ये १२६ ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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