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________________ सामाजिक व धार्मिक सेवायें ज्योतिष रत्न पं० रामलाल जैन पचररन, ललितपुर स्वर्गीय लालाजी के जीवन का प्रत्येक क्षण सस्मरणीय है तथा देश, जाति, समाज और धर्मानुराग से अोतप्रोत है । विदेश तथा सामाजिक सेवामो के लिए अपने जीवन का प्रभावक चमत्कार हमे दे गये है जो जीवन में प्रकाश का काम करता रहेगा। १ देश-भक्ति के वे बडे उपासक रहे है अपना जीवन स्वदेशी गाढे के कपड़ो से साधारणतया बिताते रहे । न कभी शौकीनी व शृगार की भावना रही, न कभी सिनेमा, नाच, तमाशे और विलासप्रियता के जाल मे वे फसे, जेल भी गये, सब कुछ त्याग किया। बलिदान अपने जीवन का देशभक्ति मे अर्पण किया । लालाजी का जीवन, निरभिमानता, सात्विक, सदाचार और सद्विचारो में व्यतीत हुआ है। वे हमे अपने देश भक्त, कर्मवीर, सादा और सात्विक जीवन व्यतीत करने का सन्देश दे गये है । २. सामाजिक-सेवा- लालाजी की सर्वोपरि कही जा सकती है। उन्होने समाज के सगठन, एकता पर बडा भारी प्रयत्न किया और उसमें सफल भी हुए परन्तु दुर्भाग्यवश अवसर पाने पर भी प्रा० दि० जैन महासभा, सघ और परिपद का एकीकरण न हो सका परिषद जैसी प्रगतिशील सुधार सस्था का भी जीवन बलिदान कर देने पर भी एकमात्र महासभा की छत्रछाया मे ही रहना स्वीकार कर लिया। साहू शान्तिप्रसादजी जैसे धनकुवेर, उदारमना उत्साही के बार-बार प्रेरणा देने पर भी समाज का भाग्य जाग्रत न हो सका और आज भी सन्निवेश की दशा में पड़ा है। हमारे समाज-सेवी, कर्मवीर ने इस दुराग्रह और कदाग्रह की परवाह नहीं की और कार्यक्षेत्र को उत्साहपूर्ण आगे बढाया । १० हजार सदस्यो की सख्या बा. लालचन्दजी एडवोकेट के नेतृत्व में सतना अधिवेशन के बाद कर सगठन कार्य किया प्रान्तीय के लिए साहूजी के अतुल धनराशि से सुसगठित कार्य किया, परिषद द्वारा स्वीकृत प्ररतावो को कार्यान्वित करने के लिए अपने साथियो के सहयोग से पूर्ण सफलता प्राप्त की। कुछ नाम जैसे मरण भोज की कुप्रथा का जनाजा निकाला गया, जैन धर्म पतितोद्धारक निरावाध सिद्ध है प्रत्येक प्राणी-शक्ति अनुसार अपनी योग्यता से उससे लाभ ले सका है। अत किसी को मारना, दुर्व्यवहार करना किसी भी सूरत मे ठीक नहीं है । इसमे लालाजी व उनके साथियो को कटुतर अपमान के उन्मुख अनेक प्रयत्न किये गये परन्तु लालाजी का यह दृश्य देखने व स्मरण करने योग्य है । ऐसा मालूम पडता था मानो सीना ताने सिकन्दर बादशाह पा रहा है। मानापमान की पर्वाह न करके हताश न हुए और साथियो को सान्त्वना दिलाकर आगे बढ़ने मे अग्रसर हुए, सिकन्दराबाद रथोत्सव मे अपमान का चकनाचूर किया । देहली महावीर जयन्ती के अवसर पर जब जलूस के १२० ]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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