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________________ भी उन्होने साहस नही खोया । वे बार-बार कहा करते कि मे जल्दी ही ठीक हो जाऊँगा श्रौर पहले की तरह राजघाट घूमने आया करूगा । हुआ भी ऐसा ही । ज्योही उनकी तबियत सभलने लगी, वे रिक्शा में राजघाट आने लगे और बाद मे उन्होने पैदल चलना भी शुरू कर दिया, लेकिन कौन जानता था कि वह बुझते दीपक की अन्तिम चमक थी । भाईसाहब चले गये, पर आज भी यह नही लगता कि वे हमारे बीच नही है। उनका हसमुख चेहरा, मधुर बाते, अच्छे कार्यों के लिए उनकी लगन और न जाने क्या-क्या बातें सामने लाती है । वे जीवन-भर समाज को देते रहे, लेने की चाह उन्होने कभी नही की । यथायंत उनका अन्तर भरा-पूरा था । 1 हमारा परम सौभाग्य था कि उन जैसा व्यक्ति हमारे बीच श्राया । उनको खोकर आज हम बडी रिक्तता अनुभव करते है । उनकी प्रेरणाए हमारा मार्ग-दर्शन करती रहे, ऐसी प्रभु से प्रार्थना है । मैं उनकी स्मृति में अपनी विनम्र श्रद्धाजलि प्रर्पित करता हूँ । अहिंसा के प्रेमी और पशुधन के रक्षक भगवान महावीर ने उस समय राज वैभव और ऐश्वर्य को लात मारकर जैनेश्वरी दीक्षा स्वीकार की जब कि रूढिभक्त धर्म के नाम पर पशुओ को यज्ञ की घघकती हुई अग्नि मे स्वर्ग प्राप्ति के लिए बलिदान कर देते थे । उन्होने अहिंसा का बिगुल बजाया और प्राणीमात्र की रक्षा का संदेश दिया । आज भोजन और विटामन के नाम पर पशुओ का वडी निर्दयता के साथ वध किया जा रहा है । देश की समृद्धि का मूल स्रोत गोधन का ह्रास हो रहा है। श्राज देश को अहिंसा की बड़ी आवश्यकता है । पशु धन की रक्षा करना प्रत्येक का कर्तव्य है । लालाजी ने इस सम्बन्ध मे महत्वपूर्ण कार्य किया, शाकाहार को प्रोत्साहन दिया और अहिंसा धर्म का प्रचार किया । मैं Sara का ध्यान इसोर प्राकर्षित करना चाहता हूं कि वे पशुधन की रक्षा करें। लालाजी के प्रति मैं अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ । ' ११४ X माननीय श्री जयन्तीलाल, मानकर सचालक, जीवदया हा मिनी लीग, बम्बई X X X
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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