SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तविक अर्थ था चरित्र की ऊचाई। उनका स्वय का जीवन वडा उदार था और उनको इस अमोघ गुण के सामने मेरा मस्तष्क बार-बार श्रद्धा से नत होता है । वे वणिक कुल में पैदा हुए थे, लेकिन वे वणिक नही वही बने। उन्होने बड़े-बड़े पदो पर पर कार्य किया । उन्हें जीवन मे एक-से-एक बढकर सुविधाएँ प्राप्त की। यदि इनके स्थान पर दूसरा होता तो लखपति बन सकता था, लेकिन वे लखपति तो क्या, हजार पति भी नही बने । जिनकी आस्था मानवीय मूल्यो मे होता है, वे धन के प्रति आसक्ति नही रखते और घन बिना आसक्ति के इकट्ठा हो नही सकता । उन जैसा साहसी व्यक्ति तो आज के युग में मुश्किल से मिल सकेगा । उन्हे जो बात ठीक लगती थी, उसे कहने मे वह कभी नही हिचकिचाते थे । उन्हे आजीवन इस बात की चिन्ता नही हुई कि उनकी बात से कोई बुरा मानेगा। जो ठीक लगा, उसे उन्होने साफ-साफ कहा । चूकि उनकी बात मे दुर्भावना नही होती थी, इसलिए उनकी कटु-से-कटु बात भी किसी को चोट नही पहुँचाती थी । I परिश्रमशील तो वे हृद दर्जे के थे । उच्चे स्थान पर पहुँच कर प्राय. व्यक्ति श्रम से अपने को बचाने लगता है और दूसरे के श्रम का लाभ लेना चाहता है, लेकिन भाई साहब मे ये बातें नही थी । वे स्वय इतना परिश्रम करते थे कि कोई युवक भी उनके परिश्रम को देखकर लज्जा अनुभव कर सकता था । श्रम उनके जीवन का प्रमुख अग वन गया था इतना कि वे उससे एक पल भी छुटकारा नही पा सकते थे । समाज सेवा के अतिरिक्त राजनीति में भी उनका भारी योगदान रहा । कुछ समय तक उन्होने राजनीति में सक्रिय भाग लिया । स्वाधीनता सग्राम की छोटी वडी सभी प्रवृतियो मे मदद की, जीवन के अन्तिम क्षण तक आदतन खादी पहनी, लेकिन जब उन्होंने देखा कि राजनीति मे ग्राडम्बर का समावेश आरम्भ हो गया है तो उन्होने थोडा पीछे हटना अच्छा समझा। फिर भी उनसे जो कुछ बना, बरावर करते रहे । पदो के लिए जनके मन मे मोह न था । वे चाहते तो किसी भी बड़े-से-बड़े पद पर पहुँच सकते थे। लेकिन चाहते तब न । वे मूक सेवक थे और उनके जीवन का लक्ष्य नि स्वार्थ भाव से सेवा करना था । वे अच्छे वक्ता एव लेखक भी थे। उनकी एक बडी विशेषता यह थी कि वे जो कुछ कहते थे, नाप-तौल कर कहते थे । शब्दो का आडम्बर उन्हे प्रिय न था । यही बात उनके लिखने के वारे थी । उन्हे जो कुछ कहना होता था, थोडे से शब्दो मे कह देते थे । इसलिए उनकी भाषा वडी गठी और मजी हुई होती थी। उनके विचार वडे स्पष्ट थे, इस वजह से उनकी भापा और शैली भी स्पष्ट थी । भाईसाहब ने लम्बी बीमारी पाई, पर वे उनसे पराभूत नही हुए। मुझे याद है, वे नित्य नियम से सवेरे राजघाट पर टहलने जाया करते थे। बीमारी ने जब उन्हें श्रणक्त कर दिया तब [ ११३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy