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________________ लगनशील लालाजी श्री गुलाबचंद पांड्या भोपाल (म०प्र०) श्री गुलावचदजी पाड्या भोपाल जैन समाज के सुयोग्य सेवा भावी कार्यकर्ता है । और सामाजिक कार्यों मे सदा अग्रसर रहते है | आपका लालाजी के प्रति बड़ा प्रेम रहा है। लाला तनसुखरायजी का जन्म सन् १८६६ ई० में० दि० जैन अग्रवाल लाला जोहरीमल जी के यहाँ हुआ | आपकी माता ने आपने बडे ही धार्मिक सस्कार बचपन से ही ऐसे डाले कि लालाजी जीवन पर्यन्त देश, धर्म-समाज की बड़ी भारी लगन से सेवा करते रहे । जैन समाज के महान विद्वान पूज्य ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी से इनको सेवा करने की प्रेरणा प्राप्त हुई मे बचपन से ही लाला जी के प्रेरणाप्रद लेख जैन पत्रो में पढता रहा मैने देखा - जब भी जैन समाज के किसी भी कार्य में चाहे वह सामाजिक हो चाहे धार्मिक किसी भी प्रकार की रुकावट या शिथिलता भाई फौरन लालाजी का प्रेरणाप्रद बुलेटिन पत्रो मे आ जाता। आपको ये पसन्द ही नही था कि हमारा देश गुलाम रहे। इसीलिए आप गांधीजी के असहयोग आन्दोलन मै सन् १९३० ई० मे कूद पड़े । आपने अपनी सर्विस से त्यागपत्र दे दिया । आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया, फलस्वरूप प्रापको ६ मास का कारावास भुगतना पडा । आप काग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता रहे । पजाब कार्यकारिणी के सदस्य, मन्त्री श्रादि कई पदो पर रहे । दि० जैन परिपद के तो आप प्राण ही थे । आप ही के कारण कई अधिवेशन सफल हुए । श्राप निज की बीमा कम्पनी के डायरेक्टर थे । इसकी भोपाल मे भी शाखा थी। मेरा श्राप से साक्षात्कार का अवसर तब आया जब आप कुछ वर्ष पूर्व ही लाला प्रेमचन्दजी कन्ट्रक्टर (लाला राजकृष्णजी) जैन दरियागंज दिल्ली के यहाँ ठहरे थे । उसी समय विश्व मे शाकाहार सम्मेलन काशी मे चल रहा था । भोपाल स्टेशन से एक स्पेशल पास हुई। हमें मिशन सचालक बाबू कामना प्रसाद के पत्र से ठीक समय मालूम हुआ । मैंने लाला जी से कहा स्टेशन चलना है । फोरन तैयार हो गए साथ में गए। भग्रेजी मे उन्होने जैन धर्म और शाकाहार पर विदेशी विद्वानो से खूब वार्तालाप किया । उस समय आपने मुझसे बातचीत के दौरान मे कहा था हमारी समाज ईसाई मिशनरियो के मुकावले धर्म प्रचार मे बहुत पीछे है । हमारा धर्म पूर्णरूप से वैज्ञानिक है। जो विद्वान् इस पर मनन, अध्ययन एक बार करता है हीरे की तरह इसकी कद्र करता है । परन्तु हमारे प्रचार की कमी के कारण जैन धर्मरूपी कोहनूर हीरा सब को प्राप्त नही हो पाता । समाज दान देने के लक्ष्य मे थोडा सुधार करे तो यह काम सहज ही हो जाता है । लालाजी जैसे कर्मठ वीर लगनशील श्रात्मा का समाज मे पैदा होना बड़े गौरव वात थी। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली अर्पितु हेतु यह स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन प्रशसनीय है। करता हूँ । समाज के युवक भाइयो का कर्त्तव्य मै लालाजी के प्रति हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित कि लालाजी के जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर; है [ १०५
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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