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________________ निडर कार्यकर्ता श्री विशनचन्द न ओवरसियर साहू सीमेट सर्विस, नई दिल्ली मापसे लगभग ३० वर्ष पुराने सबन्ध थे। लाला विशनचन्दजी लालाजी के पुराने जब भी मैं बाहर से दिल्ली आता, मापसे | साथियो मे से है। महावीर जयन्ती का उत्सव जरूर मिलता था, और आपसे जैन धर्म प्रचार प्रारभ कराने और जैन मित्रमडल द्वारा साहित्य व जैन समाज की उन्नति के सम्बन्ध मे बातें | वितरण करने का कार्य प्रापकी देखरेख में हुआ होती थी। आप की जैन धर्म प्रचार व जैन था । आपने बड़ी लगन के साथ समाज-सेवा का ) समाज को ऊचा उठाने में बड़ी वडी उमगें, | कार्य प्रारम किया था। वयोवृद्ध होने पर सेवा सच्ची लगन, घुन व ऊचे ऊचे विचार तथा | कार्यों में सबसे आगे है। लालाजी की सेवामो श्रद्धा थी। आपका सुझाव बड़ा अच्छा और का आपने सुन्दर ढग से वर्णन किया है जो लाभदायक होता था। लेकिन आप कई साल ] पठनीय है। से पेट के भोपरेशन आदि के कारण बीमार रहते थे। इसी कारण आपका स्वास्थ ठीक नही रहता था इसलिये इस दौरान मे कुछ कार्य नही कर सके, लेकिन फिर भी वीमार होते हुए भी आप जैन धर्म के विषय मे कुछ-न-कुछ लिखते ही रहते थे, जैसा कि पत्रो के देखने से पता चलता है। आज वह हमारे बीच नहीं है, हमारे से अलग हो गये है। मैं अपने पुराने साथी श्री ला० उमरावसिंह, ला० रघुवीरसिंह, महोकमलाल, जौहरीमल सर्राफ, ला० महावीरप्रसाद (नूरीमल) वला. चुन्नीलाल रोशनाई वाले जो जैन मित्रमडल दिल्ली के खास कार्यकर्तामो मे से थे, उनका तो दुख भूल ही न सका था कि अचानक आज श्री ला तनसुखरायजी जैन का भी दुःख सहन करना पड़ रहा है। आपके निधन से जैन समाज के कार्यों में बड़ी भारी हानि हुई है, मैं आपको श्रद्धाजली भेंट करता हुआ श्री जी से प्रार्थना करता हूँ कि आपकी आत्मा को शान्ति प्राप्त हो और उनके कुटुम्बी जनो को इस दुखद वियोग मे धैर्य प्राप्त हो । श्रीमान ला० तनसुखरायजी जैन रोहतक के रहने वाले थे, कनाट प्लेस नई दिल्ली में मापने एक तिलक वीमा कम्पनी के नाम से एक फर्म खोली थी, किसी कारण से वह फेल हो जाने से बन्द करनी पड़ी उसके बाद वह देहली मे ही रहकर अपना कार्य करने लगे और २१ दरयागज मे आपने अपना मकान बनवा लिया । आप उसी में रहते थे। आप जैन समाज तथा और दूसरे समाजो में सिपाही के रूप मे सचाई व बहादुरी के साथ निडर होकर कार्य करते थे। आपके दिलेरपन के बारे में क्या २ बातें बतलाऊँ, अब से १८ वर्ष पूर्व जब मैं जैन मित्र मडल दिल्ली का मत्री था तब आपको भी अपने साथ कार्य करने के वास्ते जैन मित्र मडल देहली के एक विभाग का मत्री बना दिया था। [ ३
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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