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________________ अदम्य साहसा श्री कौछल जी धकील सागर श्री लालागी मेरे प्रात्मीय मित्रो मे से मध्य भारत के लब्ध-प्रतिष्ठित वकीलो रहे । मेरा उनसे धनिष्ठ प्रेम रहा। मेरा मे श्री कौछल जी का नाम विशेष रूप से उनसे सन् १० मे अधिवेशन काल से सम्बन्ध स्मरणीय है जो समाज और देश सेवा के रहा और मेरे सभापतित्व मे जो परिषद् ने लिए सदैव अग्रसर रहते है। आपके समाज जैन समाज के एकीकरण और साम्प्रदायिकता में सुधार करने का भाव प्रशसनीय है। तथा जातिवाद को नष्ट करने में जो कार्य लालाजी के साथ प्रापन जाति में सुधार और किया, और आर्थिक परिस्थिति जव परिषद् रूढ़ियो के विरोध में ऐसी शक्तिशाली की ठीक नहीं रही उस समय तूफानी दौरा आवाज उठाई जिसके कारण मध्य भारत में करके तथा आबू के धर्म-विरोधी कर का | अपूर्व जागृति दिखाई देती है। आपका उन्मूलन करके रहे। साथ-ही-साथ जन । | लालाजी के प्रति अति अनुराग था। श्वेताम्बरी साधुवर्ग और कार्यकर्तामो का - अनन्य सहयोग प्राप्त कर विजयश्री परिपद् को प्रदान की। कितना परिश्रम ग्रीष्म-काल में राजपूताना का दौरा कर उठाया कितनी सहिष्णुता और त्याग लालाजी ने किया। यह उनके अदम्य साहस का पमिचय है। मेरा उनसे इतना भाईचारा रहा है कि जो अन्त समय तक वना रहा । सन् ६२ में मेरी उनसे आखिरी मुलाकात हुई जब वे रोग मै असित थे, मगर फिर भी उनके प्रेम मे वही प्रात्मीयता रही। -l मानवता के महान पूत श्री ग्यानवती जैन जनयात्रा संघ, दिल्ली हे धरती के प्रिय सपूत । जन मत के तनसुखराय प्रिय ॥ विश्वशान्ति के अडिग प्रणेता। अमर वीर सेनानी हिय ॥ धन्य-धन्य तन श्रम निर्माता। शान्त कान्त के अग्रिम दूत ॥ सादर श्रद्धा पुप्प समर्पित। __ मानवता के महान पूत ॥ x x x [ ७६
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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