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________________ सन् १९३४ मे आप लक्ष्मी बीमा कपनी के मैनेजर होकर दिल्ली चले पाए और इसी साल दिल्ली में आपने अ० भा० दिगम्बर जैन परिषद् का सफल अधिवेशन कराया। उसमे आप स्वागत समिति के प्रधान मत्री थे। यह अधिवेशन बडी सज धज के साथ विशाल पैमाने पर हुमा। आपने सन् ३४ से ३८ तक ५ वर्ष तक परिपद् का कार्य बहुत जोरो से किया। देश भर मे इसका प्रचार किया और कई स्थानो पर परिषद् के सफल अधिवेशन कराए। वास्तव मे पाप परिषद् के प्राण थे। सन ३६ मे पापने कोआपरेटिव बैक और जैन क्लब की स्थापना की । वीर सेवा मदिर के वीर शासक जयन्ती समारोह मे सभापति बनाए गए। उसी वर्ष निवसेडा मे भीलो की सभा के प्रधान बनाए गए और आप ने ५००० भीलो से मास-भोजन का त्याग कराया। सन् ४० में जिला मडल के प्रधान मत्री और ४१ मे नई दिल्ली काग्रेस कमेटी के प्रधान चुने गए। सन् ४२ ४३ मे काग्रेस के "भारत छोडो" आन्दोलन मे तन, मन और घन से पूरा सहयोग दिया। सन् ४४-४५ मे वनस्पति घी निपेष कमेटी के पद पर रहते हुए हजारो व्यक्तियो के हस्ताक्षर करा कर सरकार के पास भेजे । सन् ४६ मे अ०भा० मानव धर्म सम्मेलन के प्रधान मत्री रहकर जोरो से कार्य किया। सन् ४७ से ५१ तक अग्रवाल महा सभा और नारवाडी सम्मेलन के कार्य को खूब बढाया और प्रधान मत्री चुने गए। इसके पश्चात् प्रधान भी बनाए गए। सन् ५५ मे भारत के शाकाहार का प्रचार किया। सन् ५६ से ५८ तक जैन परिषद् के खडवा अधिवेशन में प्रधान मंत्री चुने गए और दरियागज दिल्ली काग्रेस मडल के सदस्य चुने गए। सन् ५८ से १४ तक अस्वस्थ रहते हुए भी मे यथाशक्ति भाग लेते रहे। इसप्रकार पापका सारा जीवन सामाजिक, राष्ट्रीय और धार्मिक कार्यों में व्यतीत हुआ। अन्त मे १४ जुलाई ६४ को अपना व्यक्तित्व दिखा कर ससार से विदा हो गए। मनुष्य की उन्नति के लिए जैन धर्म का चरित्र बहुत ही लाभकारी है। यह धर्म बहुत ही ठीक, स्वतन्त्र, सादा तथा मूल्यवान है। ब्राह्मणो के प्रचलित धर्मों से वह एकदम भिन्न है। साथ ही साथ वौद्ध धर्म की तरह नास्तिक भी नहीं है। -मेगास्थनीज, नीक इतिहासकार ७८]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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