SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३) स्वसमरानन्दः। कुम्हला जाता है, तब यह वीर झटसे सातवीं अप्रमत्त श्रेणीमें मा चमकता है। यद्यपि कई बार मोहसे प्रेरित होने पर, जंग यही तेरह प्रकारकी सेनाएं फिर अपने जोरमें आती हैं तब यह एक श्रेणी नीचे गिर जाता है और फिर अपनी अप्रमत्तताकी सावधानीसे चढ़ जाता है । तथापि अब इस वीरने बहुत ही दृढ़ता पकड़ी है और गिरनेसे हटकर आगेकी श्रेणी में चढ़नेको ही उत्सुक हो रहा है । धन्य है यह आत्मवीर ! इसने अब :सातिशय अप्रमत्तके पथपर पग धरा है. तथा अनंतानुबन्धी क्रोधः मान: माया-लोभकी सेनाओंको ऐसा लज्जामान कर दिया है कि वे अपने नामको छोड़कर अपत्याख्यानादिकी सेनाओं में जा मिल गई हैं तथा दर्शन मोहनीयकी तीनों प्रकारकी सेनाओंको ऐसा दवा दिया है कि वे अब बहुत काल तक अपना सिर न उठाएंगी। इप्त क्रियाके साहसको देख इसके परम मित्र विद्याधरने इसकी सहायको द्वितीयोपशमसम्यक्त नामके योद्धाको भेन दिया है। इसकी मदद के बरसे भव यह अपने विशुद्ध परिणामरूपी दलोंको अधःप्रवृत्तिकरणके चक्रव्यूहमें सनाता है और चारित्रमोहनीयकी २१ प्रकृतियोंको उपशम करने का प्रयत्न करता है । इस अपम. तश्रेणी में इस आत्म-चीरके पास अस्थिर, अशुभ, अयशस्कीर्ति, अरति शोक और असाता-इन छह प्रतियोंकी सेताओंने आना बिलकुल बन्द कर दिया है । इसके विरुद्ध यह एक अचम्भेकी बात देखने में आई है किमोहकी सेनासे चिढ़कर आहारक शरीर और आहारक अंगोपांगकी सेना इसके कार्य में सहाय पहुंचानेकों इसके पास आने लगी हैं।
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy