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________________ (३२) स्वमपरानन्द । तो आना ही बन्द कर दिया । केवल ६३ प्रकृतियोंकी ही कर्म कौनं आती है तथा इसके साथ युद्ध करनेवाली सेनाओंमें पहिले ....८७ प्रति थीं, अब प्रत्याख्यानावरणी क्रोध, मान, माया, लोमे, तिर्यग्गति तिर्यगायु, उद्योत और नीच गोत्र युद्धस्थलसे चल दिये केवल ७९ प्रकारकी सेना रह गई। परन्तु इस समय मात्मावारके पराक्रम को देख मोहकी ये तीन प्रकारकी सेना युद्धस्थल में आ तो गई, परन्तु आत्मवीरके साथ प्रीति उत्पन्न होने के कारण इसकी .. हानि न करके मदद ही करती हैं। वे तीर्थकर, साहारक अनाहारक प्रकृतियोंकी सेनाएँ हैं । इनको भी . मिलाया जाय तो.. आत्मवीर के सामने. ८१ सेनाएँ खड़ी हैं। यदि मोहकी.. फौगको - देखा जाय तो इस समय नरकायु · और . तियआयुके सिवाय .. १४६: की सत्ता विद्यमान है । छठी श्रेणी में तिर्यगायु · सत्तासे .. भागती है। ऐसी सेनाओं का मुकाबला होते हुए भी यह धीरवीर . नहीं घबड़ाता है । अपनी शान्तता, वीतरागतासे अपने परम मित्र विद्याधर द्वारा भेजे हुए दशधर्म, द्वादश तप, द्वादश भावना आदि वीरोंकी सेनाके प्रतापसे यह परमसुखकी रुचिशे भारी युद्ध । कर रहा है और इस स्वसमरानंदमें लवलीन हो अतीन्द्रियं । आनन्दकी श्रद्धासे परमामृतका पान करता है। (१७) मोह-शत्रुसे अत्यन्त साहसके साथ युद्ध करनेवाला चेतनः । वीर छठी श्रेणी में अपने पराक्रमके प्रतापसे जब संज्वलन कपाय : और नौ नोकषायकी सेनाओंको अपने वीतरागमय तीक्षण बाणः । रूपी परिणामोंके. बलसे ऐसा बलहीन बनाता है कि उनका मुखं ।'
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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