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________________ स्वप्समरानन्द। बचाकर अपने आत्मीक धनकी लोलुपतामें मगन रह स्वात्मपर्वतसे झरनेवाले स्वानुभव सुधारसका पान करते हुए और परको निनसे हटाते हुए स्वसमरानन्दका अद्भुत आनन्द ले परमसुखी रहते हैं। हा! आनकी आनमें क्यासे क्या हो गया ? साहसी आत्माकी सेनामें अंधेरा छा गया! दर्शन मोहके भयंकर आक्रमणसे चैतन्य देवकी सर्व सेना विह्वल होगई ! मोहनी धूलकी ऐसी वर्षा हुई कि विशुद्ध परिणामरूपी योद्धाओंकी आखोंमें अंधेरा फैल गया। कषायरूपी प्रदल वैरियोंने आत्मीक धनकी सुधि भुलचा दी। जो आत्मा सम्यक्त मित्रकी सहायतासे निजधनको दृढ़तासे पकड़े हुआ था और उसीके विलासमें रमना अपना सुख समझता था, वही आत्मा उस मित्रके छूटने और मिथ्याद्रोहीके वशमें आजानेसे इन्द्रियोंके विषयोंको ही उपादेय मानने लगा है, विषयोंके लिये अन्यायसे धनोपार्जन करने लगा है, रात्रिदिन भवकी बाधाओंमें पड़कर दुखी होने लगा है, तथापि उनको त्यागता नहीं। परस्वरूपमें आप पनेकी बुद्धिने सारा ही खेल उलटा बना दिया है । बड़ा ही आश्चर्य है । निजरंग भूमिमें निजरूप धर कर नृत्य करनेवाला आत्मा आज पररंग शालामें अपना पर रूप बनाए पर हीकी चेष्टामें उन्मत्त होरहा है। अपनी पिछली अनादिकालकी निकृष्ट अवस्थामें रहने लग गया है। जिस तत्त्वज्ञान और तत्त्वविचार सेनापतियोंकी सहायतासे इसने मोहपर विजय पाई थी उनको भी अपनी सेवासे उन्मुखकर दिया है। यह दशा
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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