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________________ · (i) स्वसमरानंन्द । 17 E " F : करनेवाले कर्मो को दूर भगाते हैं । मिश्र गुणस्थानकी भूमिका में 'यह आत्मा आगया है। मिश्र मोहनीका बल मंत्र हो गया है । इस समय (११७- १६-१५-२ आयु ) ७४ कर्म प्रकृतियों की सेना समय २ आकर बढ़ती जाती है। दूसरे में १०१ आंती थीं । अत्र २५ तो दुसरे ही. तक रहीं तथा आयुकर्मका बंध इस मिश्रगुणस्थान में होता "नहीं, इससे दो आयु प्रकृति घटी | परन्तु १०० कर्म शत्रुओं की सेना इस गुणस्थान में इस आत्माको अपने असर से बाधित कर रही है । दूसरे गुणस्थान में जब १११ प्रकतियोंकी सेना दुखी कर रही थी, तब यहाँ अनंतानुबंधी : और एकेंद्रिय द्वेन्द्रिय, तेन्द्रिय, चौन्द्रिय तथा स्थावर ऐसे ९ ककी सेनाएं दब गईं हैं, तथा मरणके अभाव से नर्क सिवाय तीन शेष नुपूर्वी घटानेपर और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति मिलानेपर १०० प्रकृति अपना जोर कर रही हैं। रणभूमिकी सतांमें देखो तो जो सातवें नहीं चढ़ा है, उसके आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग तथा तीर्थकर इन तीनको छोड़ १४१ कर्मप्रकृतिकी सेना अपना चल कर रही हैं। वास्तवमें इस समय भी वह आत्मी बड़ी ही गफलत में है । इसके मिश्र परिणामों की पहचान अत्यंत सूक्ष्म है | एक अंतर्महूर्त ही नहीं बीता था कि यह आत्मा फिर मिध्यात्वके तीव्रोदयसे प्रथम गुणस्थानको भूमिमें आजाता है और पहले की तरह महामोहके बंधन में बंध जाता है । वास्तवमें परिणा , - मोंकी लड़ाई, बड़ी ही कंठिन है । पलक मारनेके भीतर ही इनकी उलटपुलट अवस्था हो जाती है । जो वीर भेदविज्ञानके भयानक शस्त्रको हाथमें रखते हैं वे ही इन शत्रुओं के हमलों से अपनेको .
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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