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________________ (१९) स्वसमरानन्द। जाता है और यहां आकर स्वरूपाचरण चरित्रमें रमन करता है। धन्य है परिणामरूपी संसारकी विचित्रता, जिसने इस आंत्माको आनकी आनमें विषयं सुखकी श्रद्धासे हटाकर अतीन्द्रिय आत्मीक अनुभवकी दशाकी श्रद्धामें लाकर खड़ा कर दिया है। अब यह परम सुखी अपने परिश्रमको सफल लख स्वसमरानन्दका स्वाद ले अमृतानन्दी हो रहा है !! - अपनी अनुभूति सत्ता भूमिमें सम्यग्दष्टी आत्मा यद्यपि बहुतसे कर्म वर्गणाओंकी सेनासे घिरा हुआ है और इसपर बाणोंकी .वर्षा हो रही है, तथापि चार अनंतानुबंधी कषाय और तीनों मिथ्यात्वके दब जानेसे मोहकी सर्व सेनाका बल घट गया है और यह शिवपुखका अभिलाषी मोक्षनगरीके राज्य करनेका हुल्लासी अपने शुभाशुभ कर्मोंके उदयमई आक्रमणोंसे कुछ हर्ष विषाद नहीं करता है । सत्य विद्याधरके आज्ञारूप वचनोंमें श्रद्धा घार यह भव्य जीव इस श्रद्धा तन्मय हो रहा है कि मैं शीघ्र ही कर्मशत्रुओंका विजयी होऊंगा । यह साहसी अब अपने भात्माके मनोहर उपवन में जाकर सैर करता है और उसमें प्रफुल्लित होनेवाले स्वगुण वृक्षोंकी शोभा देख परम सुखी होता है। जो सुख नौ ग्रीवकवाले मिथ्यादृष्टी अहमिन्द्रोंको नहीं प्राप्त है, जो सुख. सम्यक्त रहित चक्रवर्तीके भागमें नहीं आता है, उस सुखको भोगनेवाला यह धीर वीर हो रहा है । सत्य है जो कोई निन उपयोग परिणतिको सर्व ज्ञेय पदार्थोसे संकोच 'परमात्माके शुद्ध अनुभवमें जोड़ता है, और थोड़ी देरके लिये थम
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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