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________________ स्वसमरानन्द । दनकी भूमिकामें आ जाता है। अब यहां इसकी सत्तामै १४१* कर्म प्रकृति सेनाओंके साथ दो कर्म प्रकृति की सेना और मिस जाती है और १४३ कर्म प्रकृति सत्तामें हो जाती है । इसके एक समय पहले तो १०३ शत्रुओं की सेना ही सामना कर रही थी, परन्तु अब ९ प्रतियोंकी सेना जो खाली बैठी थी वह भी रठ खड़ी हुई और इस आत्माको दुःखी करने लगी। इन ९ में हैं तो अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोम और ५ में स्थावर एथेन्द्रिय जाति और विकलत्रय ऐसे ९ प्रकृतियों की सेना माजाती है । और नरकगत्यानुपूर्वी इस गुणस्थानमें दब जाती है, इससे १११ प्रकृतियोंकी सेना अपना जोर दिखलाती है । तथा नई सेनाका आगमन जो इसके पहिले केवल ७४ ही ही का था भा बढ़ता है और ११७ में से १०१ प्ररूतियोंकी सेनाका आना होने लगता है । जो २७ शत्रुओंझी सेना पहिले गिनाई थी उसमेरो हुंडक संस्थान, और नपुंसक वेद निकालकर तथा मनुष्यायु और देवायु जोड़कर शेष सर्व २७ प्रतियोंकी सेनाका मागमन पहलेकी अपेक्षा इप्त गुणस्थानमें बढ़ गया है। इस सासादन अवस्था मात्मा एक गहलतामें आ जाता है, सम्यतभावसे छूट जाता है। तीव्र कपायके आवेशमें उत्कृष्ट . * फुट नोट-इस लेख के गत प्रपन्धोंमें अनादि मिश्यादृष्टीके: १४३ का इंध लिखा था सो १४१ का ही बंध समझना चाहिये। तीर्थर, आहारक शरीर, आहारक बंधन, आहारक संघात, आहारक आंगोपांग, सम्यक मिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति मिथ्यात्व.. इन ७ का बंध नहीं होता।
SR No.010057
Book TitleSwasamarananda athwa Chetan Karm Yuddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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