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CHECRETRIETTE
पवित्र तीर्थ
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अरे, फिरत कत, वावरे ! भटकत तीरथ भरि। अन्यौं न धारत सीस पै सहज सूरपग-धूरि ।। वसत सदा ता भूमि पै, तीरथ लाख करोर। लरत मरत जहँ वाकुर, विरमि वीर वर जोर ॥ नगी जोति जहँ जूम की, खगी खड्ग खुलि भूमि।। रंगा रुधिर सौं धूरि सो, धन्य धन्य रण-भूमि ॥ तह पुष्कर, तहँ सुरसरी, तहँ तीरथ, तप, याग। उठ्यों सुवीर-कबन्ध जहँ वहई पुण्य, प्रयाग ।। संगर-सोहैं सूरि जहँ, भये मिरत चक-चूरि ।। बड़भागन ते मिलति वा रण-आँगन की धूरि।।
-श्री वियोगीहरि JAIRAT RETREATIHARSERE
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