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________________ २६ राजपूताने के जैन- वीर कितने ही प्राचीन मन्दिर धराशायी हो रहे हैं, अनेक जगह मूर्ति की पूजन प्रचालन करने वाले मनुष्यों की जगह चूहे और नौल रह गये हैं, अनेक विशाल मन्दिर अपने सच्चे उपासकों का अभाव देखकर दहाड़ मारकर रो रहे हैं फिर भी, उनके करुण क्रन्दन ** को सुनते हुये अनावश्यक नये नये मन्दिर बनवाने, प्रतिमायें स्थापित करवाने में क्या लाभ है ? यह हमारे श्रीमानों के अंतरंग बात सिवाय सर्वज्ञदेव के और कौन जान सकता है ? " इतिहास से नीच और कमीन लोगों को मुहब्बत नहीं होती - जिनके पुरखाओं ने कभी कोई आदर्श उपस्थित नहीं किये, वे कभी अपने पुरखाओं को याद नहीं करते । ऐसे ही लोग इतिहास से घृणा करते हैं। पर आश्वर्य तो यह है कि जिनके पुरखाओं-बाप दादों ने अनेक लोकोत्तर कार्य किये वह भी आज इस ओर से उदासीन हैं । 2 लोग कहते हैं. भूतकालीन बातों - गढ़े मुद्दों को उखाड़ने से क्या लाभ ? भूत को छोड़ कर वर्तमान की सुध लेना चाहिये । पर, मेरा विश्वास है कि हरएक क़ौम और देश का, वर्तमान और भविष्य भूत पर ही निर्भर है। जिसका भूत अन्धकार में है उसका वर्तमान और भविष्य कभी उज्ज्वल हो ही नहीं सकता । जिस मकान की नींव दृढ़ नहीं, वह बहुत दिनों तक गगन से बात नहीं कर सकता। इसीलिये भूतकालीन बातें सभी सुनना चाहते बालक बालिकायें, युवा-युवतियाँ, वृद्ध और बुद्धाएँ सभी फुर्सत के वक्त कहानी कहते और सुनते हैं। भूतकालीन बातें "220" 1. . :
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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