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________________ बच्छावतों का उत्थान और पतन २५३ . अक्षरशः सच न हो; परन्तु इससे उस समय के राज्य-दरवार की हायी और ५०० घोड़े सिरोपाव समेत चारणों को दिये ।...महाराजनैजोधपुर में एक वर्ष तक रह कर बहुत से गाँव, हायी-घोड़े और लाख पसाव (चारण भाटों को जो दान दिया जाता है उसका नाम उन्होंने पसाव रक्खा है। बड़े दान को जिस में गाँव भी हों अत्युक्ति से लाख पसाव और करोड़ पसाव कहते हैं ) भाटों और चारणों को दियं । और तो क्या नागोर का परगना ही शंकरजी बारहट को दे दिया था। जिसका हाल आगे आवेगा । संवत् १६४५ में महाराज ने सवातीन करोड़ पसाव तीन चारणां को दिये। संवत् १६४९ में महाराज बुरहानपुर से जहाँ वादशाही काम को गये थे, आकर जैसलमेर को पधार । वहां फाल्ग्ण बदी १ को रावल हरराज की बेटी गंगाबाई से शादी की । महाराज ने २०० घोड़े ५२ हाथी और दो लाख रुपये चारणों को दिये । संवत् १६५१ में फिर एक करोड़ पसाव शंकरजी बारहट को दिये । इसका हाल ख्यात में (इतिहास और यश सम्बन्धी अन्य) इस तरह पर लिखा है कि “शंकर ने महाराज की ख्यात बनाई थी। वह बहुत अच्छी तो नहीं थी परन्तु महाराज कीवलशिश तो बड़ी थी। जिससे महाराज नै माघ वदी ५ को शंकरजी के मुजरा करते ही एक करोड़ देने का हुक्म दिया। दीवान ने खजाने से १०००० थैलियां निकलवाई और अर्ज की कि, रुपये नजर से गुजार कर दिलाने चाहिये। महाराज ने समझ लिया कि यह जानता है कि करोड़ रुपये देखकर महाराज की नीयत बदल जायेगी। जव दरबार हुआ और महाराज झरोड़ में बैठे तो उन्होंने फरमाया कि । "करमचन्द करोड़ रुपये यही हैं या कुछ और बाकी है १" उसने अर्ज की कि पूरे हैं । महाराज ने फरमाया कि भई यह तो थोड़े है, मैं तो जानता था कि बहुत होते होंगे। शंकर से कहा कि सवा करोड़ का मुजरा करो, एक करोड़ तो यह ले जाओ और २५. लाख में नागौर तुम को दिया गया। कहते हैं शंकरजी ने नागौर की पैदावार कई वर्ष तक खाई श्री ! (राजरसनामृत पहला भांग पृ० ३६-३८) -गोयलीय
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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