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________________ राजपूताने के जैन वीर यद्यपि मान्य श्रोमाजी के उक्त लेख से स्पष्टतया इन प्रतिहार राजाओं का ज़ैनधर्मी होना प्रकट नहीं होता, अपितु वेद पाठी हरिश्चन्द्र ब्राह्मण इन राजाओं का मूल पुरुष था, इससे तो यह सव जैनेतर ही प्रकट होते हैं किन्तु विदुरत्न प्रख्यात् पुरातत्त्व वेत्ता पं० रामकरणजी ने ( जिन्होंने कि उक्त शिलालेखों का वाचन क्रिया है) मार्च सन् १९१४ में जोधपुर में होने वाले जैनसाहित्य-सम्मेलन में " मारवाड़ के सब से प्राचीन शिलालेख " शीर्षक निवन्ध पढ़ा था, उससे प्रकट होता है कि कुक्कुक (१४वाँ), राजा जैन था । इससे पहिले के राजा किस धर्म के अनुयायी थे । इसका स्पष्टीकरण पं० रामकरणजी के लेख से भी नहीं होता । क्योंकि आपने केवल कक्कुक के सम्वन्ध में ही लेख पढ़ा था । फिर भी अनशन व्रत करने और राज्य त्यागने का कई राजाओं का उक्त लेख में वर्णन मिलने से मालूम होता है कि इस वंश ने किसी जैनाचार्य द्वारा जैनधर्म की दीक्षा लेली होगी । पाठकों के अवलोकनार्थ विद्ववर्य्य पं० रामकरणजी के उक्त लेख को यहाँ ज्यों का त्यों उद्धृत किया जाता है: १८८ · E " जैन सम्बन्धी सब से प्राचीन शिलालेख गांव घटियाला में, जो जोधपुर से पश्चिम की ओर है, विक्रमी संवत् ९९८ ( ई० स० ८६१) का मिला है । इस शिलालेख की भाषा प्राकृत है, इस उन्नीसवें पद्य में नक्षत्र वारादि सहित संवत् लिखकर, उस के आगे, जिन-मन्दिर बनाने वाले प्रतीहार कक्कुक महाराज के कई उत्तम कार्यों का कथन कर, कक्कुक का जिन-मन्दिर बनाना
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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