SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ के जैन राजा १८७ १३. बाउक_(सं० १२ का पुत्र) जब शत्रुओं का अतुल सैन्य नंदावल्ल को मार कर भूअकृप में आगया और अपने पक्ष वाले द्विज नपकुल के प्रतिहार भाग निकले, तथा अपना मंत्री एवं छोटा भाई भी छोड़ भागा, उस समय उस राणा (राणा बाउक) ने घोड़े से उतर कर अपनी तलवार उठाई। फिर जब नवा मंडलों के सभी समुदाय भाग निकले और अपने शत्रु राजा मयुर को एवं उसके मनुष्य (सैनिक) रूपी मृगों को मार गिराया, तब उसने अपनी तलवार म्यान में की। वि० सं०८९४ की ऊपर लिखी हुई जोधपर की प्रशस्ति उसी ने खुदवाई थी। १४. अनुकर.. (सं० १३ का भाई) घटियाले से मिले हुये वि० सं० ९१८ के दोनों शिलालग्न इसीफे हैं । जिनसे पाया जाता है कि उसने अपने सपरित्र से मरू, माड, वाल, तमणी (नवणी), अज, (आर्य) एवं गुर्जर के लोगों का अनुराग पाम किया, वडणाणय मंडल में पहाड़ पर की पल्लियों (पीला, भीलों के गाँवों) को जलाया, रोहिन्सकूप (घटियाले) के निकट गाँव में हट्ट (हाट, बाजार) बनवा कर महाजनों को बसाया और मोअर (मंडोर) तथा गहिन्सकृप गाँवों में जयस्तम्भ स्थापित किये । कक्कुक न्यायी, प्रजापालक एवं विद्वान था "" + राजपुताने का इतिहास पहली शिल्द पृ० ११०-१५२ ।
SR No.010056
Book TitleRajputane ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherHindi Vidyamandir Dehli
Publication Year1933
Total Pages377
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy