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________________ ठीक इसी प्रकार हम अपने आपको कितना भी दक्ष एवं प्रवुद्ध क्यो न समझते हों पर जब हम अपने चचल मनकी चचलताको तौलते हैं तो यही अनुभव करते... हैं कि आत्मसयम की दृष्टिसे तो अभी हम निरे बालक ही है। इसलिए द्रव्यो द्वारा पूजा इत्यादि हम जैसे लोगो के मनो में परमात्मा में अनुराग उत्पन्न कराने का एक वडा सहारा है और मन से कपाय श्रीर विषयो को हटाने का एक प्रभावशाली उपाय है । तत्वज्ञानी पुरुषो को यदि हमारी यह किया "वाल किया" ही लगे तो भी उन्हें प्रसन्नता ही होनी चाहिए, यही सोच कर कि खेल ही खेल में उनके वालको में भविष्य के लिए अच्छे संस्कार तो जम रहे हैं । - - पूजा में परमात्मा को लक्ष्य में रख कर ही वन्दना की जाती है, जय बोली जाती हैं और बहुमान किया जाता है । इससे परमात्मा में अटूट अनुराग उत्पन्न होता है जो हमारे लिए महत्वपूर्ण प्राप्ति है। धीरे-२ अभ्यास से आत्मा स्वत उनके शुद्ध गुणो में रमण करने लगती है । द्रव्य-पूजन की यही महान् उपयोगिता है । -- हिंसा का स्वरूप :- पूजा में द्रव्यो के प्रयोग को इसलिए अनुचित मानना कि यह तो प्रत्यक्ष हिंसा है, सरासर हिंसा के स्वरूप को न समझता ही है । बिना सोचे समझे "हिंसा है, हिंसा है" के अनर्गल प्रलाप से अपने भाइयो में भ्रम पैदा कर उन्हें जैनत्व से परे ढकेलना अपने पैरो पर आप कुल्हाडी मारने जैसी भूल है । तत्वज्ञ पुरुपो से निवेदन है कि वे इस पर निष्पक्षता पूर्वक विचार करें। द्रव्य-प्रयोग अनिवार्य :- मूर्ति पूजा में पदार्थों का प्रयोग अवश्य किया जाता है पर उन्ही का जिनको हम सभी अपने जीवन निर्वाह में बराबर प्रयुक्त करते हैं । यहाँ तक कि मुनिराजो का भी जीवन निर्वाह, इन्ही पदार्थो पर ही निर्भर है, जो पूर्ण अहिंसक माने जाते है । मकान, जल, फूल, फल, दूध, मिठाई इत्यादि सभी पदार्थ हम सभी के जीवन में वरावर काम में आने वाले - पदार्थ हैं । इन पदार्थो के अभाव मे क्या किसी महानुभाव का जीवन सम्भव : है ? सम्भव है कोई कम द्रव्यो से काम चला लेता हो और किसी को अधिककाम में लेने पडते हो परन्तु अधिक द्रव्यो को काम में लेने वाला, कम द्रव्यो से उतना ही कार्य करने वाले की तुलना में, बुरा नही कहा जा सकता, भले . ही कमजोर कहा जाय । जैसे आहार करने वाले मुनिराज को, तुलना में तपस्वी मुनिराज को विशेष मानते हुए भी, बुरा नही मान सकते । द्रव्यो के अभाव में हम एक कदम भी आगे नही बढ सकते । " ७ 1
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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