SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शंका-समाधान किसी लाभ की आशा नही भ्रान्ति बहुवा हानि का वडा भारी कारण बन जाती है। यही हाल मूर्ति-पूजा का हुआ। कई एक भ्रान्तियाँ तो स्वाभाविक पैदा हुई और कई एक वाद में अपनी मान्यता को पुष्टि एव प्रचार के लिए गढ ली गई । भ्रान्ति चाहे जैसी हो एवं चाहे जिस तरह से पैदा हुई हो, हमें उस पर पूरी सहृदयता पूर्वक विचार करते हुए तय्यातथ्यको ठीक से समझना है ताकि भविष्य में और अधिक हानि न हो। - किसी लाभ को आशा नहीं कहा जाता है कि मूर्ति तो जड पदार्थ है। जड को चेतन के समान समझना सरासर भूल है। जड मूर्ति में असली वस्तु सी क्षमता कहाँ सम्भव ? यदि यह सम्भव हो तो पत्य रके वीज उगाने से उग आते; पत्थर की वनी गाय, गाय की तरह दूध देती, पत्थर के बने फलो के आहार से क्षवा बान्त हो जाती और पत्थर के फूलो से सुगन्व महक उठती। जब हम यह प्रत्यक्ष देखते हैं कि इनमे ऐसी पूर्ति कतई नही होती और कोई लाभ नहीं मिलता तो पत्यर को वनी भगवान की मूति से भी हम किसी लाभ की आशा नही कर सकते। पत्थर को बनी गाय और वास्तविक गाय में कितना भारी अन्तर है उसे हम सब अच्छी तरह जानते है। पत्यर को गाय दूध नही देतो, घास नही खाती, रम्भाती नही, चलती-फिरती नही, बीमार नही पडती और मरती भी नहीं। इस तरह हम देखते हैं कि गाय में और गाय को मूर्ति में काफी असमानता भरी पड़ी है। किन्तु उनमें समानता कौन सी है, यही चिन्तनीय है । पत्थर के टुकड़े को गाय क्यो कहा:-नत्यर के टुकडे को गाय क्यो कहा? भेड़, चकरी,भैस या भालू तोनही कहा? पत्यरके और भो हजारो टुकडे देखते हैं, उन्हें तो गाय नही कहते ? निश्चय, यह उसके आकार-प्रकार का प्रभाव है। कलाकार ने उस पत्थर में एक ऐसी सजीदगी पैदा कर दी कि बुद्धिमान व्यक्ति को भी उसे
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy