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________________ पता चलता है कि ये केवल जिनराज भगवान के ऐतिहासिक चिह्न मात्र ही नहीं हैं वरन् इससे भी आगे ये हमारे हृदय कमल में परमात्मा के प्रति प्रगाढ श्रद्धा पैदा करने वाले एव अजैनो में जैनत्व का महत्व पूर्ण प्रचार करने वाले पुनीत स्तम्भ भी है। आप जानते हैं कि अनेक दुर्गम स्थानो में जहाँ हमारे भाई अनेक पीढियो से रह रहे हैं और जहाँ मुनिराजो के आवागमन के साथ-साथ धर्म के अन्य साधन भी अवरुद्ध हैं, केवल इन्ही की कृपा से वहाँ जैनत्व की रक्षा हुई है। कहाँ गुजरात, कहाँआसाम और कहाँ कन्याकुमारी अन्तरीप, इनकी विशाल भुजाओमें जैनत्वका दीपक जगमगा रहा है। ___ आज जहाँ हमारे धर्म प्रचारक मुनि महाराज विलायत या अमेरिका नहीं जा सकते, इस साधन द्वारा वहाँ भी, हम चाहे तो वह कार्य कर सकते है जिसका अनुमान नही लगाया जा सकता। प्रचार के साधन धर्मग्रन्थ भी पढ़े-लिखे मनुष्यो की रुचि और अवकाश की ही वस्तु हैं, परन्तु मन्दिर तो पास से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिये अपनी तरफ खीच ही लेता है । इतने पर भी दु.ख का विषय तो यह है कि अत्यन्त निर्मल उद्देश्य होते हुए भी दूसरे देशो में इनका प्रचार करना तो दूर रहा, हमारे अपने ही देश में, अपने ही लक्ष २ भाई, विरोधी वन इनसे दूर जा बैठकमा विरोधी भावों का विस्तार :-किसी कारणवश मतभेद फैला और वह धोर-२ वढ़ती ही गया। जो स्थिति है वह हमारे सामने है।. दोष किसको 'द सभी समान रूप से दोषी हैं । एक समझन सकातो दूसरा समझा न सका। अव अमूर्ति पूजक दलों में सम्मिलित हुए भाइयो के लिए पूजा औरदर्शन करने या न करने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता परन्तु आज मूर्ति-पूजेकोमै भी दिन प्रति"दिन इस ओर से रुचि कम होती जा रही है और थोड़े से पूजा इत्यादि करने वालो में भी वहुतो को पूजा का वास्तविक महत्व ही मालूम नही है। इसका मुख्य कारण यही है कि शिक्षा के अभाव में हमारा इस दिशा का ज्ञान अपूर्ण एवं अपरिपक्व है । . मूर्ति का तो विपय ही भिन्न हैं। उसमें न शब्द है,न उच्चारण, नव्याकरण है, न लिपि । वह तो संकेत मात्र ही करती है जिसको अनुभव प्राप्त व्यक्ति ही समझ सकता है। ऐसी परिस्थिति में हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम अपने "पूर्वजो के अपार परिश्रम और धन राशि से-खडी की गई इस कला पूर्ण वस्तु का उचित ज्ञान प्राप्त करे और उससे उचित लाभ उठावें ।
SR No.010055
Book TitlePooja ka Uttam Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPanmal Kothari
PublisherSumermal Kothari
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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