SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्वनिर्माता ३३ कर्तृत्व पक्षवालोके समक्ष यह युक्ति भी उपस्थित की जाती है कि जब कर्त्ता अभावमे प्रकृतिसिद्ध सनातन ईश्वरका सद्भाव रह सकता है और इसमे कोई आपत्ति या अव्यवस्था नही आती है, तव यही न्याय जगत्के अन्य पदार्थोके कर्त्तृत्वके विषयमे क्यो न लगाया जाए ? ऐसा कोई प्रकृतिका अटल नियम भी नही है कि कुछ वस्तुओका कर्त्ता पाया जाता है, इसलिए सब वस्तुओका कर्ता होना चाहिए। ऐसा करनेसे तर्कशास्त्रगत अल्प-पदार्थ-सम्बन्धी नियमको सार्वत्रिक पाया जानेवाला नियम मानने रूप दोष ( Fallacy ) आएगा । इस प्रसगमें 'की ऑफ नॉलेज' की निम्न पक्तिया उपयुक्त है "सृष्टिकर्त्तृत्वके विषयमे यह प्रश्न प्रथम उपस्थित होता है कि ईश्वरने इस विश्वका निर्माण क्यों किया? एक सिद्धान्त कहता है कि इससे उसे आनन्दकी उपलब्धि हुई, तो दूसरा कहता है कि वह अकेले - पनका अनुभव करता था और इसलिए उसे साथी चाहिए थे। तीसरा सिद्धान्त कहता है कि वह ऐसे प्राणियोका निर्माण करना चाहता था जो उसका गुणगान करे तथा पूजा करे। चौथा पक्ष कहता है कि वह विनोदवश विश्वनिर्माण करता है । इस विषयमे यह विचार उत्पन्न होता है कि विश्वकर्त्ता की ऐसा जगत् निर्माण करनेकी इच्छा क्यो हुई जिसमें बहुत बडी संख्या मे प्राणियोको नियमत दुख और शोक भोगने पडते है ? उसने अधिक सुखी प्राणी क्यो नही बनाए जो उसके साथ मे रहते ।"१ १ “The first question, which arises in connection with the idea of creation is, why should God make the world at all? One system suggests, that he wanted to make the world, because it pleased him to do so, another, that he felt lonely and wanted company, a third, that he wanted to create beings who would praise ३
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy