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________________ विश्वनिर्माता Man - Passions = God, God + Passions - Man. अर्थात् मनुष्य - वासनाएँ = ईश्वर, ईश्वर + वासनाएँ मनुष्य । २ जैन दार्शनिकोने परमात्माका पद प्रत्येक प्राणीके लिए आत्म- जागरण द्वारा सरलतापूर्वक प्राप्तव्य बतलाया है । यहा ईश्वरका पद किसी एक व्यक्ति विशेषके लिए सर्वदा सुरक्षित नही रखा गया है । अनन्त आत्माओने पूर्णतया आत्माको विकसित करके परमात्मपदको प्राप्त किया है तथा भविष्यमे प्राप्त करती रहेगी। सच्ची साधनावाली आत्माओको कौन रोक सकता है ? वास्तविक प्रयत्न - शून्य दुर्बल अपवित्र आत्माओको किसी विशिष्ट शक्तिकी कृपा द्वारा मुक्तिमे प्रविष्ट नही करवाया जा सकता। जैन दर्शनके ईश्वरवादकी महत्ताको हृदयगम करते हुए एक उदारचेता विद्वान् ने कहा था - " यदि एक ईश्वर माननेके कारण किसी दर्शनको 'आस्तिक' सज्ञा दी जा सकती है, तो अनन्त आत्माओके लिए मुक्तिका द्वार उन्मुक्त करनेवाले जैन- दर्शनमे अनन्त गुणित आस्तिकता स्वीकार करना न्याय प्राप्त होगा ।" परमात्मा अनन्त ज्ञान, अनन्त आनन्द, अनन्त शक्ति तथा अनन्त दर्शन आदि गुणोका भण्डार है । वह ससार-चक्रमे परिभूमण कर जन्मजरा-मरणकी यन्त्रणा नही उठाता । उस ज्ञान, आनन्द, वीतराग, मोहविहीन, वीत-द्वेष, निर्भीक, प्रशान्त, परिपूर्ण परमात्माका विश्वके सुखदुख-दानमे हस्तक्षेप स्वीकार करनेपर वह आत्मा राग-द्वेश, मोह आदि दुर्बलताओसे पराभूत हो साधारण प्राणीकी श्रेणीमें आ जाएगा । जब, परमात्मामे परम करुणा, त्रिकालज्ञता और मर्यादातीत शक्तिका भण्डार विद्यमान है, तब ऐसे समर्थ और कुशल व्यक्तिके तत्त्वावधान या सहयोगसे निर्मित जगत् सुन्दरता, पूर्णता तथा पवित्रताकी साकार प्रतिमा बनता और कही भी दुख और अशान्तिका लव-लेश भी न पाया
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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