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________________ कल्याणपथ ४४३ भापामे ऐसे कार्य प्रति मृतप्राय सम्भावनाका प्रकाशन किय जा सकता है। क्या वापक्रे विचारोको प्रचारित करनेका पुण्य सकल्प करनेवाला सर्वोदय समाज इस करुणा प्रतारके कार्यक्रमको अपने विषयोकी तालिकामे प्रथम स्थान नहीं दे सकता है ? सत्य वात यही है कि हृदयमे इस विषयमे प्रवल भावना चाहिए, तव मार्ग निकलते देर न लगेगी। श्री बिनोवाजीने सर्वोदय समाजके जयपुर सम्मेलनमे कहा था, 'सर्गदयका सूर्य अपनी किरणे राजप्रासादसे लेकर निर्वनकी झोपड़ी तक समान रूपसे फैलाता है।' क्या यह करणामयी किरणोका पुज सर्वोदयका सूर्य अन भाइगेके अन्त.करणमे विद्यमान प्राणिवपकी आसक्तिरूप अधियारीको दूर करनेत्री परम कृपा नहीं करेगा' आजके काग्रेसी गासनकी ममता भूमि सर्वोदय समिति यदि प्राणीरक्षणसवधी विविध अगोके परिरक्षणने तत्पर हो जाय तो वह चामत्कारित जनजागरण करनेमें समर्थ हो सकेगी। सुयोगकी वात है, कि भगवान महावीर और बुद्धदेव सदग करणा प्रसारकोके कारण विश्वविख्यात विहार प्रान्तके सलुत्प श्री राजेन्द्रप्रसादजी सर्वोदय समाजके अध्यन होने के साथ भारतके गणतत्र गासनके सर्वप्रिय सभापति भी है। ऐसी स्थितिमे सुप्रचारके लिए सब प्रकारको अनुकूलता प्रतीत होती है। कर्मयोगी व्यक्तियोके झ्ण्ड के झुण्ड यदि कार्यमे तत्पर हो जाये, तो अहिसाकी सुदृढ आधार-गिलापर स्थित लोकोत्तर सजग ससारका स्थापन हो सकता है। अभी कुछ समय पूर्व यह दुखद सवाद समाचारपत्रोमे छपा था, कि एक भ्रान्त हिन्दू भाईने स्वप्नमे अपने इष्टदेवकी प्रेरणा पाकर जागने पर अपने प्रिय पुत्रकी निर्मम हत्या कर दी। ऐसे कार्योका सद्भाव रहना प्रबुद्ध भारतके गौरवकं पूर्णतया प्रतिकूल है। लोगोके अन्तःकरणमे यह विचार प्रतिष्ठित करानेमे गासक और गासितोका कल्याण है, कि जिस प्रकार जिस दिगामें सूर्यका उदय होता है, उसे 'पूर्व' नामसे पुकारा जाता है उसी प्रकार जिस व्यक्ति, समाज या राष्ट्रमें अहिंसाकी प्रतिष्ठा होती है, वहा ही सुखके हेतु पवित्र धर्मका वास होता है।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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