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________________ ४३३ सर्व जीवोका सर्वागीण उदय अर्थात् विकास विद्यमान होगा | 'सर्व' शब्द का अमिधेय 'जीवमात्र' के स्थानमें केवल 'मानव समाज' मानना ऐसा ही सकीर्णता और स्वार्थभावपूर्ण होगा, जैसा ईसाके Thou Shalt not kill' इस वचनका 'जीववध निषेधके' स्थानमे केवल 'मनुप्य चच निषेव' किया जाना । करीव १७०० वर्ष पूर्व जैनाचार्य समन्तभद्रने भगवान् नहावीरके अहिंसात्मक शासनको 'सर्वोदय तीर्थ' शब्द द्वारा सकीर्तित किया था। यह सर्वोदय तीर्थ 'स्वयं अविनाशी होते हुए भी सर्व विपत्तियोका विनाशक है। इस अहिंसात्मक तीर्थमे अपार सामर्थ्यका कारण यह है कि उसे अनन्तशक्तिके भण्डार तेज पुज आत्माका बल प्राप्त होता है, जिसके समक्ष ससारका केन्द्रित पशुवल नगण्य वन जाता है । आज क्रूरताकी वारुणी पोकर मूर्छित और मरणासन्न संसारको वीतराग प्रभुकी करुणारस-सिक्त संजीवनीके सेवनकी अत्यन्त आवश्यकता है। हिंसात्मक मार्गसे प्राप्त अभ्युदय और समृद्धि वर्षाकालीन क्षुद्र जन्तुओके जीवन सद्ग अल्पकाल तक ही टिक्ती है और शीघ्र ही विनष्ट हो जाती है। करुणामय मार्गके अवलम्बनसे शीघ्र जयश्री प्राप्त होती हैं । इस सम्बन्धमे महाकवि शेक्सपियरका यह कथन वडा महत्त्वपूर्ण है कि “जब किसी साम्राज्यकी प्राप्ति के लिए क्रूरतापूर्ण और करुणामय उपयोका आश्रय लिया जाय, तव ज्ञात होगा, कि मृदुताका मार्ग शीघ्र ही विजय प्रदान कराता है।" कल्याणपथ इस युगमे हम गणनातीत नकली वस्तुनोको देखते है, इसी प्रकार आज यथार्थ दयाके देवताके स्थानमें मक्कारीपूर्ण कृत्रिम अहिंसाको देखते है, जिसका अन्त करण हिंसात्मक पाप पुंज प्रतारणाओका क्रीडा-स्थल २ १ “सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ।” युवत्यनुशासन “Then lenity and cruelty play for a kingdom. the gentler gamster is the soonest winner"-King Henry V Act III, c VI. २८
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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