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________________ ४०७ पुण्यानुबन्धी वाड्मय ही पद्यके पढनेसे साधककी आत्मा आनदित हो उठती है। इस अवसर पर हमे भूधरदासजीका भजन स्मरण आता है, जिसमे कविने जीवनकी चरखेसे तुलना की है। कितना मार्मिक भजन है यह "चरखा चलता नाही, चरखा हुआ पुराना ॥टेक॥ पग-खूटे द्वय हालन लागे, उर मदरा खखराना ॥ छोदी हुई पाखड़ी पसली, फिर नहीं मनमाना ॥१॥ रसना तकलीने बल ,खाया, सो अब कैसे सूट। सबद-सूत सूधा नहिं निकस, घड़ी घड़ी फल टूटै ॥२॥ आयु-मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे। रोग इलाज मरम्मत चाहै, वैद बाढई हारे ॥३॥ नया चरखला रगा-चगा, सबका चित्त चुराव । पलटा वरन गए गुन अगले, अव देख नहिं भावै ॥४॥ मौटा महीं कातकर भाई, कर अपना सुरझेरा। अन्त आगमें ईधन होगा, 'भूधर' समझ सदेरा ॥ ५॥" उनका यह पद भी कितना प्रबोधक है, जिसमे कविवर प्रभुकी भक्तिके लिए प्रेरणा करते है - (२) "भगवन्त भजन क्यो भूला रे, यह संसार रैनका सुपना तन धन वारि बबूला रे ॥ भगवन्त० ॥ इस जौवनका कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे । काल कुदार लिए सिर ठाड़ा, क्या समझ मन फूला रे ॥२॥ स्वारथ साधे पाच पाव तू, परमारथको लूला रे। कहूँ कैसे सुख पैहे प्राणी, काम करे दुखमूलारे ॥३॥
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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