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________________ पुण्यानुवन्धी वाङ्मय जैनियोने कभी भी अन्य सप्रदायके देवताओकी मूर्तियो, मठो, मन्दिरोका ध्वस नहीं किया। ___ अनेक कट्टर विद्वान् जैनोके प्रति अनादरका ही प्रचार करते रहते थे। उधर जैन साहित्यके प्रति साम्प्रदायिक विद्वानो द्वारा भ्रान्त प्रचार भी रहा, अत जब भारतीय वाड्मयके विषयमे निष्पक्ष साहित्यिकोने प्रकाश डाला, तव भी जैन वाडमयके वारेमें भ्रान्त धारणाओकी अभिवृद्धि हुई। मेग्डानल्ड जैसे पश्चिमके पण्डितोकी 'India's Past' पुरातन भारत-सम्वन्धी रचनाओमे जैन ग्रन्थोके विपयमें अत्यन्त अल्प प्रकाश प्राप्त होता था। कभी-कभी तो ऐसा मालूम पडता था, कि भारतीके भण्डारमें जैन ज्ञानी जनोने कुछ सामग्री समर्पित भी की थी, या नहीं; यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते थे। साम्प्रदायिकता अथवा भ्रान्त धारणाओके भंवरसे जैन वाड्मयका उद्धार कर जगत्का ध्यान उस ओर आकर्षित करनेका श्रेय डा० जैकोबी, डा० हर्टल सदृश पाश्चात्य पडितोको है। उन्होने अपार श्रम करके जैन शास्त्रोको प्राप्त किया। उनका मनन तथा परिशीलन करके जगत्को बताया कि जैन वाङ्मयके कोपमे अमूल्य ग्रन्थराशि विद्यमान है, और वह इतनी अपूर्व तथा महत्त्वपूर्ण है, कि उसका परिचय पाए विना अध्ययन पूर्ण नहीं समझा जा सकता। इन विदेशी अध्येताओके प्रसादसे यह वात प्रकागमें आई कि जैन आचार्यों तथा विद्वानोने जीवनमे प्रत्येक अंग पर प्रकाश डालने वाली बहुमूल्य सामग्री लोकहितार्थ ww m umm - { "Thus we see that persistent perscutions were directed against the Jains and to the credit of Jamism be it spoken that it never attempted to use the stord against other religions" Vide Article “Jain church in mediaevel India. J. G. P. 125, Vol XVII, 4. २३
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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