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________________ इतिहासके प्रकाशमे ३११ केन्द्रीय धारा सभाके भूतपूर्व अध्यक्ष सर षण्मुखं चेट्टीने कुछ वर्ष पूर्व मद्रासमे महावीरजयती महोत्सव पर अपने भाषणमें कहा था किआर्य लोग वाहर से भारतमे आए थे। उस समय भारतमे जो द्रविड' लोग रहते थे, उनका धर्म जैनधर्म ही था। अत प्रमाणित होता है, कि भारतवर्षके आदि निवासी जैनधर्म के आराधक रहे है । 'ऋग्वेदमें पुरातत्त्वज्ञोको भारतवर्षके प्राचीन अधिवासियोके विपयमें महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है। आर्य नाम से कहे जाने वाले लोग तो बाहरसे आए थे। उनके सिवाय जो लोग यहा रहते थे, उनको वेदमे घृणित शब्दोमे 'दस्यु' अथवा 'दास' कहा है। आदिनिवासी होनेके कारण उनलोगोने आर्योके स्वदेशमे प्रवेगका प्रतिरोध किया इसलिये शत्रुओका निन्दनीय वर्णन आगत आर्यों द्वारा होना अस्वाभाविक नहीं है । कथित 'दस्यु' वर्गका धर्म, संस्कृति, वर्ण आदि पृथक् था। उनका वण श्याम था। वे अयज्वन (यज्ञबलि विहीन), अकर्मन् (वैदिक क्रियाकाण्डशून्य) अदेव्य (देवोके विषयमे उदासीन), अन्यव्रत (भिन्न प्रकारके नियमोके पालन करने वाले) तथा देवपीयु (देवताओका तिरस्कार करने वाले, कारण मास आदिको ग्रहण करने वाले कथित देवताओका सम्मान करना उनकी सस्कृतिके विपरीत है) थे। वे आर्योके देवताओ, यनो तथा धार्मिक विचारोका प्रकट रूपमें निषेध करते थे। उनकी नासिकाकी आकृति आर्योकी अपेक्षा जुदी थी। अत उनको 'अनास' कहा है। उन्हें 'मृधवाक्' (Mridhravac) कहा है, जो उनकी अस्पप्ट भाषा या विरुद्ध वाणीको सूचित करता था। पुरातत्त्वज्ञोके मतमे ये ही द्रविड १ सदाचार, गुणादिको अपेक्षा गल्डिोको गास्त्रीयभाषामें आर्य मानना होगा। Yesterday and Today--Chapter on Glimpse of Ancient India. pp_59-71. by Raibahadur A Chakravarly M. A I. E. S (Retd)
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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