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________________ २७० जैनशासन कल्याणक, निर्वाण आदिसे पापरूपी मलको नप्ट करता है, वह काल - मंगल कहा है। " एव प्रणयभेयं हवदि त कालमगलं पवरं । जिणमहिमासवधं णदीसरदीप पहुदीदो ।। " - ११२६ । इस प्रकार जिनेन्द्र भगवान् की महिमासे सम्वन्ध रखने वाला वह श्रेष्ठ काल मंगल कहा है, जैसे नन्दीश्वरद्वीप पर्व आदि । साधक मगल कार्यो द्वारा विशेष अवसरकी स्मृतिको सफल बनाता है । प्राचार्य गुणभद्रने मनुष्यके शरीरको घुनके द्वारा भक्षित इक्षुके साथ' तुलना की है। इक्षुमे जो गाठे होती है, उनको पर्व कहते है । गाठोको न खाकर यदि उर्वरा भूमिमे लगा देते है, तो अच्छी फसल आती है । इसी प्रकार जीवनमे नदीश्वर, दशलक्षण पर्वके कालको भोगमे न लगाकर सयम तथा आत्मसाधनामे व्यतीत करे, तो साधक मगलमय जीवनद्वारा अभ्युदय एव निश्रेयस निर्वाणकी प्रतिष्ठाको प्राप्त करता है । जैन पर्वो श्रावण कृष्णा प्रतिपदाका प्रभात अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है, कारण उस दिन भगवान् महावीर प्रभुने विपुलाचल पर्वतपर शाति और समृद्धिका जीवनप्रद उपदेश दिया था । वर्धमान हिमाचल १ " मानुष्यं घुणभक्षितेक्षुसदृशम् ।" - श्रात्मानुशासन, ८१ । २ " प्रत्यक्षीकृतविश्वार्थ कृतदोषत्रयक्षयम् । जिनेन्द्र गौतमोऽपृच्छतीर्थार्थ पापनाशनम् ॥ ८ ॥ स दिव्यध्वनिना विश्वसंशयच्छेदिना जिनः । दुन्दुभिध्वनिधीरेण योजनान्तरयायिना ॥ ६० ॥ श्रावणस्यासिते पक्षे नक्षत्रेऽभिजिति प्रभुः । प्रतिपद्य पूर्वाह्णे शासनार्थमुदाहरत् ॥ ६१ ॥ " - हरिवंशपुराण सर्ग २ |
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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