SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૬૨ जैनशासन फर्ग्युसन महाशय लिखते है'-"इस मदिरमे, जो कि सगमर्मरका बना हुआ है, अत्यन्त परिश्रमी हिन्दुओकी टाकीसे फीते जैसी वारीकीके साथ, ऐसी मनोहर आकृतिया बनाई गई है कि उनकी नकल कागज पर उतारनेमे बहुत समय लगानेपर भी मैं समर्थ नहीं हो सका।" ___ कर्नल टॉडने मदिरके गुबजको देख चकित होकर लिखा है कि "इसका चित्र तैयार करनेमे लेखनी थक जाती है। अत्यन्त श्रमशील चित्रकारकी कलमको भी इसमे महान् श्रम पडेगा। इन मदिरोमें जैनधर्मकी कथाएँ चिनित की गई है। व्यापार, समुद्रयात्रा, रणक्षेत्र आदिके भी चित्र विद्यमान है।" मदिरोके सौन्दर्यने कर्नल टॉडके अत - करणपर इतना प्रभाव डाल रखा था कि श्रीमती हटर ब्लेर नामकी महिला ने मदिरके गुबजका चित्र जव टॉड साहबको विलायतमे दिखाया तो उससे आकर्षित हो उनने 'पश्चिम भारतकी यात्रा' नामकी अग्नेजी पुस्तक उक्त महिलाको समर्पण की और उस महिलासे कहा-"हर्ष है कि तुम आबू गई ही नही, किन्तु आवको इग्लैण्डमे ले आई हो।" देवगढ़ बुदेलखडके जाखलोन स्टेशनसे लगभग १० मीलकी दूरी पर अत्यन्त कलापूर्ण स्थान है। देवपति और खेपति वधुओने अपनी विशुद्ध भक्तिके प्रसादसे विपुल द्रव्य लाभ किया और द्रव्यका सद्व्यय करते हुए अगणित कलामय जिनेन्द्रमूर्तिया देवगढमे बनवाई , जिनके सौन्दर्य दर्शनसे नयन सफल हो जाते है। वह श्रवणवेलगोलाकी लघआवृत्ति सदृश प्रतीत होता है। साची (भूपाल रियासत) की प्राचीन भव्य वौद्ध सामग्री जिस प्रकार हृदयपर अमिट प्रभाव डालती है उसीप्रकार प्रेक्षक भी देवगढकी अनुपम उत्कृष्ट कलापूर्ण सामग्रीसे प्रभावित तथा आनदित हुए बिना नही रह सकता। वहा हजारो मूर्तियोको देख ? Picturesque Ilustrations of Ancient Archietcture in Hindustan by Fergusson २ श्रावू जैन मदिरोके निर्माता पृ० ६५, ६६
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy