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________________ आत्मजागृतिके साधन - तीर्थस्थल २५५ हुए भी, भगवान् गोम्मटेश्वर बाहुवलीकी ६० फीट ऊँची भव्य तथा विशाल मूर्तिके कारण अतिशय प्रभावक तथा आकर्षक तीर्थस्थल माना जाता है । वह स्थान हासन स्टेशनसे ३२ मील, मैसूरसे ६० मील तथा वैगलोर से ६० मीलकी दूरी पर अवस्थित है। सर मिर्जा इस्माइलने मैसूरके दीवान की हैसियतसे दिए गए अपने एक भाषण में कहा था, 'सम्पूर्ण मैसूर राज्यमे श्रमणवेलगोल सदृश अन्य स्थान नही है, जहा सुन्दरता तथा भव्यताका मनोज्ञ समन्वय पाया जाता हो ।' वह जैनतीर्थ होनेके साथ विश्वके कलाकारो तथा कलाप्रेमियोके लिए दर्शनीय तथा अभिवदनीय स्थल है । उस स्थानमे श्रमणशिरोमणि वाहुवली स्वामीकी लोकोत्तर मत विद्यमान है तथा वहाका वेलगोल-सरोवर भी महत्त्वपूर्ण है । इस कारण श्रमण तथा वेलगोल समन्वित उस भूमिको श्रमणवेलगोला कहते है । जिस पर्वतपर मूर्ति विराजमान है वह भूतलसे ४७० फीट ऊँचाईपर है । समुद्रतलसे ३३४७ फीट ऊँचा है । पर्वतका व्यास २ फर्लांगके लगभग है । पहाडपर चढनेके लिए लगभग ५०० सीढिया पहाडमें ही उत्कीर्ण है । प्रवेशद्वार वडा आकर्षक है। अन्य पर्वतोंके समान दूरसे रमणीयता और समीपमे भीषणतारूप विषमता यहा नही है । वह चिकना, ढालसमन्वित वढिया पाषाणयुक्त है । दर्शक जव भगवान् गोम्मटेश्वरकी विशाल मनोज्ञ मूर्तिके समक्ष पहुँच दिगम्बर शात जिनमुद्राका दर्शन करता है तब वह चकित हो सोचता है - 'अहा ! मै दुखदावानलसे वचकर किस महान् शान्तिस्थल में आ गया हूँ । वहा आत्मा प्रभुकी मुद्रासे विना वाणीका अवलवन ले मौनोप्रदेश ग्रहण करता है। हजारो वर्ष प्राचीन मूर्ति दर्शकको प्राय नवीन निर्मित मूर्ति-सी प्रतीत होती है । सभी ऋतुएँ आकर भगवान्का हृदयसे स्वागत करती है । कारण मूर्तिके ऊपर किसी भी प्रकारकी छाया नही है, जो सूर्य, चन्द्र और वर्षा आदि ऋतुओको प्राकृतिक मुद्राधारी प्रभुके समादर अथवा दर्शनमे अंतराय उपस्थित कर सके ।
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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