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________________ २४६ जनशासन सकोके जीवनसे पवित्र तीर्थोमें अपने जीवनको परिमार्जित बनाना विवेकी साधकका कर्तव्य है। महान् देव भगवान् ऋषभदेवने कैलास पर्वतपर तपश्चर्या करक 'निर्वाण प्राप्त किया इसलिये सभी साधक उस कैलासगिरिको प्रणाम करते है। उसे अष्टापद भी कहते है। विहार प्रान्तके भागलपुर नगरको पुरातन कालमे चम्पापुर नाम था। वहासे, वारहवे तीर्थकर वाल ब्रह्मचारी भगवान वासुपूज्यने निर्वाण प्राप्त किया था। सौराष्ट्र-गुजरातकी जूनागढ रियासतमें अवस्थित ऊर्जयन्त गिरिसे भगवान् नेमिनाथ प्रभुने मुक्ति प्राप्त की। इस गिरिको रैवतक पर्वत भी संस्कृत साहित्यमे कहा गया है। हिन्दीमे गिरनार पर्वत नाम प्रसिद्ध है। अतिशय उन्नत होनेके कारण स्वामी समन्तभद्र ने इसे 'मेघपटलपरिवीततट' कहा है। और उसके आकार-विशेपको लक्ष्यमे रखते हुए 'भुव ककुदम्'-पृथ्वीरूपी वृषभका ककुद कहा है । धवला टीका पृ०६७-१। इस पर्वतके समीपवर्ती नगरको 'गिरिणयर पट्टण' बताया है। पर्वतका नाम गिरिनगर से गिरनार रूपमे कालक्रमसे परिवर्तित हुआ प्रतीत होता है। महाभारत के पुरुप श्रीकृष्णके चचेरेभाई भगवान् नेमिनाथ बाईसवें तीर्थकरकी तपश्चर्या और मुक्तिसे यह पर्वत पवित्र होनेके कारण न केवल जैनो द्वारा ही वन्दनीय है, बल्कि अन्य सम्प्रदायोके द्वारा अपने ढग पर पूज्य बनाया जाकर तीर्थ माना जाने लगा है। प्रधानतया जैन सस्कृतिसे विशिष्ट सम्बन्ध होनेके कारण यह अतिगय पवित्र जैन तीर्थ माना जाता है। जिन नेमिनाथ भगवान्की आत्म-जागरण, गाथासे इस पर्वतका कण-कण पवित्र है, उन हरिवगिरोमणि अरिष्टनेमि जिनेन्द्रका चरित्र, करुणा और विश्वमैत्रीकी दृष्टिसे अपना लोकोत्तर स्थान रखता है। नेमिनाथ भगवान्के विवाहका मगल महोत्सव मनानेके लिए सौराष्ट्र देश समुद्यत हो रहा था कि इतनेमे विवाहके जुलूमके समय वरराज नेमिनाथ भगवान्ने पशुओका करुण क्रन्दन सुना और देखा कि मृग आदि पशु
SR No.010053
Book TitleJain Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1950
Total Pages517
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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